वस्तुनिष्ठ प्रश्न
सही विकल्प चुनें।
1. गैर – संस्थागत वित्त प्रदान करने वाले सबसे लोकप्रिय साधन है
(क) देशी बैंकर (ख) महाजन (ग) व्यापारी (घ) सहकारी बैंक
उत्तर -महाजन
2.इनमें से कौन संस्थागत वित्त का साधन है?
(क) से० साहूकार (ख) रिश्तेदार (ग) व्यवसायिक बैंक (घ) महाजन
उत्तर – (ग)व्यवसायिक बैंक
3. भारत के केन्द्रीय बैंक कौन है?
(क) रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (ख) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (ग) स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (घ) पंजाब नेशनल
उत्तर-(क)
4. राज्य में कार्यरत केन्द्रीय सहकारी बैंक की संख्या कितनी है?
(क) 50 (ख)75(ग)35 (घ) 25
उत्तर- (घ)
5. दीर्घकालीन त्राण प्रदान करने वाली संस्था कौन – सी है?
(क) कृषक महाजन (ख) भूमि विकास बैंक (ग) प्राथमिक कृषि साख समिति (घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर -(ख)
6.भारत की वित्तीय राजधानी (Financial Capital ) किस शहर को कहा गया है।
(क ) मुंबई (ख ) दिल्ली (ग) पटना (घ) बंगलौर
उत्तर -(क)
7. सहकारिता प्रांतीय सरकारों का हस्तांतरित विषय कब बनी?
(क ) 1929 ई० (ख) 1919 ई. (ग) 1918 ई. (घ) 1914 ई.
उत्तर-(ख)
8. देश में आयी कार्यरत क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की संख्या है
(क) 190 (ख ) 192 (ग) 199 (घ) 196
उत्तर-(घ)
9. व्यवसायिक बैंक का राष्ट्रीयकरण कब किया गया?
(क) 1966 ई०(ख) 1980 ई. (ग) 1969 ई०(घ ) 1975 ई.
उत्तर-(ग)
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
1.साख अथवा ऋण की आवश्यकताओं की पूर्ति…..संस्थानों के द्वारा की जाती हैं। उत्तर – वित्तीय
2. ग्रामीण क्षेत्र में साहूकार द्वारा प्राप्त ऋण की प्रतिशत मात्रा ….है। उत्तर -30 प्रतिशत
3. प्राथमिक कृषि साख समिति कृषकों को….. ऋण प्रदान करती है। Ans . अल्पकालीन
4. भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना……में हुई। उत्तर – 1935ई
5. वित्तीय संस्थाएँ किसी भी देश का ……. माना जाता है । उत्तर – मेरुदंड
6. स्वयं सहायता समूह में लगभग ……. सदस्य होते हैं उत्तर – 55-20
7.SHG में बचत और ऋण संबंधित अधिकार निर्णय……लेते है। उत्तर – समूह के सदस्य
8. व्यवसायिक बैंक ……… प्रकार की जमा राशि को स्वीकार करते हैं। उत्तर-चार
9. भारतीय पूँजी बाजार…. वित्तीय सहायता प्रदान करती है। उत्तर – दीर्घकालीन
10. सूक्ष्म वित्त योजना के द्वारा …… पैमाने पर साख अथवा ऋण की सुविधा उपलब्ध होता है। उत्तर – छोटो या लघु
लघु उत्तरीय प्रश्न
1.वित्तीय संस्थान से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – वित्तीय संस्थाएँ मौद्रिक क्षेत्र में देश अथवा राज्य को ऐसी संस्थाओं को कहते हैं जो लोगों को आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु साख एवं मुद्रा संबंधी कार्यों का संपादन करती है । ये वित्तीय संस्थाएँ राज्य द्वारा संपोषित होती है और देश के केन्द्रीय बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के दिशा – निर्देशों के अंतर्गत कार्य करती हैं। ये संस्थाएँ समाज के आर्थिक विकास के लिए उनकी आवश्यकता के अनुरूप अल्पकालीन, मध्यकालीन एवं दीर्घकालीन साख या ऋण उपलब्ध करवाती है।
2. राज्य की वित्तीय संस्थान को कितने भागों में बाँटा जाता है, संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर – राज्य की वित्तीय संस्थान को मुख्यतः दो भागों में बाँटा जाता है
(i) गैर – संस्थागत वित्तीय संस्थान,
(ii) संस्थागत वित्तीय संस्थागत ।
(i) गैर – संस्थागत वित्तीय संस्थान – इसके अन्तर्गत महाजन, साहूकार, व्यापारी, रिश्तेदार आदि आते हैं। गाँवों में महाजनों को ऋण प्रदान करने वाला सबसे लोकप्रिय साधन माना जाता है, क्योंकि महाजनों से ऋण लेना सबसे आसान है । ग्रामीणों को उत्पादन एवं उपयोग संबंधी सभी कार्यों के लिए महाजन व साहूकारों के द्वारा ऋण उपलब्ध कराया जाता है । ऋण देने के बदले में ऋण लेने वाले से अमानत स्वरूप उनके जमीन, जेवर – जेवरात तथा अन्य कीमती वस्तुओ को गिरवी रखवा लिया जाता है । लिए गए ऋण पर ब्याज की दर सरकारी ब्याज से काफी ज्यादा होती है। यदि समय पर ऋण का भगतान नहीं किया जाता है. तो अमानत स्वरूप रखे गए सामान को बेच दिया जाता है। ग्रामीणों को अपने रिश्तेदारों अथवा अन्य किसानों से भी ब्याज अथवा बिना ब्याज के ऋण प्राप्त हो जाता है । गैर-संस्थागत स्रोत से ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण देने की कुल मात्रा लगभग 48 प्रतिशत है।
(ii) संस्थागत वित्तीय संस्थाएँ इन संस्थाओं के अंतर्गत निम्न बैंक तथा समितियाँ आते हैं
(क) सहकारी बैंक हमारे राज्य में सहकारी बैंक द्वारा उपलब्ध सहकारी साख व्यवस्था तीन स्तरों की है –
- गाँवों में प्राथमिक सहकारी साख समितियाँ
- जिला स्तर पर केन्द्रीय सहकारी बैंक
- राज्य स्तर पर राज्य सहकारी बैंक ।
(ख)-बिहार के किसानों को इनके माध्यम से अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण को सुविधा प्राप्त होती है। यहाँ 25 केन्द्रीय सहकारी बैंक जिला स्तर पर तथा राज्य स्तर पर बिहार राज्य सहकारी बैंक कार्यरत है।
(ग)-प्राथमिक सहकारी समितियाँ इस समिति को स्थापना कृषि क्षेत्र की अल्पकालीन ऋणों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए की जाती है। एक प्राथमिक साख समिति का निर्माण किसी गाँव या क्षेत्र के दस व्यक्ति मिलकर कर सकते हैं। इन समितियों को प्राथमिक कृषि साख समिति भी कहा जाता है । ये समिति उत्पादक कार्यों के लिए 1 वर्ष के लिए अल्पकालीन ऋण देती है, लेकिन विशेष परिस्थितियों में इनकी अवधि एक वर्ष से बढ़ाकर तीन वर्ष की जा सकती है।
(घ)-भूमि विकास बैंक- किसानों को दीर्घकालीन ऋण प्रदान करने के लिए भूमि बंधक बैंक खोला गया था, बाद में इसका नाम भूमि विकास बैंक रखा गया । यह किसानों की भूमि को बंधक रखकर कृषि में सुधार एवं विकास के लिए दीर्घकालीन ऋण प्रदान करती है। इस ऋण की अवधि 15 से 20 वर्षों तक की होती है। यहाँ राज्य स्तर पर बिहार राज्य भूमि विकास बैंक कार्यरत है जिसे राज्य सहकारी और ग्रामीण विकास बैंक कहा जाता है।
(ड़)- व्यवसायिक बैंक देश में बैंकों पर सामाजिक नियंत्रण की नीति (1968) तथा उनका राष्ट्रीयकरण( 1969 ) के बाद व्यवसायिक बैंकों के द्वारा किसानों को अधिक मात्रा में ऋण प्रदान किया जाने लगा। पर राज्य में व्यवसायिक बैंकों के द्वारा जितने साख की सुविधा प्रदान की जा रही है. वह किसानों की जरूरत के अनुकूल नहीं है । 2000-01 में लक्ष्य का मात्र 44 प्रतिशत कृषि साख ही प्रदान किया गया। बिहार में कृषि साख की जरूरत लगभग 700 करोड़ रुपए की अधिक है और उपलब्धता मात्र 584 करोड़ रुपये की हुई।
(च) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की स्थापना 1975 ई. में हुई। इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य सीमान्त एवं छोटे किसानों, कारीगरों तथा अन्य कमजोर वर्ग की जरूरतों को पूरा करना था । देश में अभी 196 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक कार्यरत हैं, जबकि बिहार में इनकी संख्या 221 है । राज्य में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के द्वारा प्रदान की जा रही साख की सुविधा में वृद्धि हो रही है, फिर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक छोटे एवं सीमांत किसानों की जरूरतों को पूरा करने में सफल नहीं हो पा रहे हैं।
(छ) नाबार्ड यह एक ऐसी संस्था है, जो देश में कृषि तथा ग्रामीण विकास के लिए पुनर्वित प्रदान करती हैं। यह सरकारी संस्थाओं, व्यवसायिक बैंक तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिए वित्त की सुविधा प्रदान करता है और इनके द्वारा बाद में यह सुविधा किसानों को प्राप्त होती है । बिहार राज्य में नाबार्डने 1998-99से2000-01 केबीचकल539.27 करोड रुपए का पनवित सहायता प्रदान किया।
3. किसानों को साख अथवा ऋण की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर – किसानों को विभिन्न कृषि कार्यों के लिए ट्रैक्टर, पावर टीलर, पिग सेट , मकान बनाने , पुराने ऋणों का भुगतान करने, कृषि में स्थायी सुधार या किसी व्यक्तिगत कार्य के लिए साख अथवा ऋण की आवश्यकता होती है।
4. व्यवसायिक बैंक कितने प्रकार की जमा राशि को स्वीकार करते हैं ? संपादित विवरण दें।
उत्तर – व्यवसायिक बैंक चीर प्रकार की जमा राशि को स्वीकार करते हैं
(i) स्थायी जमा,
(ii) चालू जमा
(iii) संचयी जमा,
(iv) आवर्ती जमा।
(i) स्थायी जमा – स्थायी जमा खाते में एक निश्चित अवधि जैसे -1 वर्ष या इससे अधिक के लिए रुपये जमा किये जाते हैं । इस निश्चित अवधि के अंदर इस रकम को निकाला नहीं जा सकता । इस प्रकार के जमा को सावधि जमा भी कहा जाता है । इस अवधि तक जमा किए गए रुपयों पर बैंक ब्याज भी देती है ।
(ii) चालू जमा- इसमें रुपया जमा करने वाला अपनी इच्छानुसार रुपया जमा कर सकता है और निकाल भी सकता है। इसमें किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं रहता है । इसे मांग जमा भी कहते हैं । इस प्रकार का जमा व्यापारियों तथा बड़ी-बड़ी संस्थाओं के लिए सुविधाजनक होती है।
(iii) संचयी जमा – इस प्रकार के खाते में जमाकर्ता जब चाहे रुपया जमा कर सकता है, लेकिन रुपया निकालने का अधिकार सीमित रहता है । जमाकर्ता जमा किए गए पैसों में से एक निश्चित रकम से अधिक नहीं निकला सकता है । इस खाते में चेक की सुविधा भी प्रदान की जाती है।
(iv) आवर्ती जमा इस प्रकार के खाते में व्यवसायिक बैंक अपने ग्राहकों से एक निश्चित अवधि जैसे -60 माह या 72 माह के लिए एक निश्चित रकम जमा के रूप में लेती है और बाद में एक निश्चित रकम भी देती है।
5.सहकारिता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – सहकारिता का अर्थ है “एक साथ मिल-जुलकर कार्य करना । लेकिन अर्थशास्त्र में इसका प्रयोग व्यापक अर्थ में किया जाता है, “ सहकारिता वह संगठन है जिसके द्वारा दो या दो से अधिक व्यक्ति स्वेच्छापूर्वक मिल-जुलकर समान स्तर पर आर्थिक हितों की वृद्धि करते हैं । दूसरे शब्दों में, ” सहकारिता उस आर्थिक व्यवस्था को कहते हैं जिसमें मनुष्य किसी आर्थिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए मिल – जुलकर कार्य करते हैं । सहकारिता के तीन आधारभूत सिद्धान्त हैं
(क) संगठन की सदस्यता स्वैच्छिक होती है ।
(ख) इसका प्रबंधन और संचालन जनतंत्रात्मक आधार पर होता है ।
(ग) इसके आर्थिक उद्देश्य में नैतिक और सामाजिक तत्व भी शामिल रहते हैं।
6. स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – स्वयं सहायता समूह में एक-दूसरे के पड़ोसी 15-20 सदस्य होते हैं, जो नियमित रूप से मिलते हैं और बचत करते हैं। प्रति – व्यक्ति की बचत 25 रुपए से लेकर 100 रुपए या अधिक हो सकते हैं । समूह इन कों पर ब्याज लेता है जो साहूकार द्वारा लिए जाने वाले व्याज से कम होता है । एक या दो वर्षों के बाद अगर समूह नियमित रूप से बचत करता रहता है, तो समूह बैंक से ऋण लेने के योग्य हो जाता है । ऋण समूह के नाम पर दिया जाता है और इसका मकसद सदस्यों के लिए स्वरोजगार के अवसरों का सृजन करना है।
7.भारत में सहकारिता की शुरुआत किस प्रकार हुई? संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर – भारत में सहकारिता की शुरुआत पर पिछली शताब्दी की शुरुआत से ही जोर दिया जाने लगा था, जिसका उद्देश्य था निर्धन तथा कमजोर वर्ग के लोगों के उत्थान एवं किसानों को सस्ती दर पर ऋण उपलब्ध कराना । सबसे पहले 1904 ई० में एक ” सहकारिता साख समिति विधान “ पारित हुआ । पुन : इसकी प्रगति एवं विकास की रूपरेखा निर्धारित करने के उद्देश्य से 1914 ई. में मेक्लेगन समिति की नियुक्ति हो गई। 1919 ई. के राजनीतिक सुधारों के अनुसार सहकारिता प्रांतीय सरकारों का हस्तांतरित विषय बन गई । अतः इसके संचालन का अधिकार राज्य सरकारों के हाथ में आ गया। 1929 ई. की महान आर्थिक मंदी ने इसके विकास पर विराम लगा – दिया । लेकिन 1935 ई. में हमारे भारत में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की स्थापना हुई। इसके अंतर्गत एक कृषि साख विभाग का गठन किया गया जिसका कार्य कृषि विकास के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करना एवं अपने महत्वपूर्ण सुझाव प्रदान करना था । सहकारी समितियों की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति सहकारी बैंक के द्वारा होती है जो हमारे देश में तीन स्तर पर कार्य करते हैं।
8.सूक्ष्म वित्त योजना को परिभाषित करें।
उत्तर – छोटे पैमाने पर गरीब जरूरतमंद लोगों को स्वयंसेवी सहायता के माध्यम से कम ब्याज दर पर साख अथवा ऋण उपलब्ध कराने की योजना सूक्ष्म वित योजना कहलाती है तथा ऐसी संस्थाएँ सूक्ष्म – वित्तीय संस्थाएँ कहलाती हैं। इस संबद्ध में अपने पड़ोसी देश बंगलादेश के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित प्रो. मो. युनूस का प्रयास सराहनीय है । उन्होंने गरीब ग्रामीणों के लिए सूक्ष्म वित्त प्रबंधन के माध्यम से उनके विकास कार्यों में सहयोग किया जिसका अनुसरण हम अपने बिहार में कर सकते हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1.राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान किसे कहते हैं? उसे कितने भागों में बाँटा गया है ? वर्णन करें।
उत्तर – ऐसी वित्तीय संस्थाएं जो देश के लिए वित्तीय और साख नीतियों का निर्धारण करता है तथा राष्ट्रीय स्तर पर वित्त प्रबंधन के कार्यों को संपादित करती है,राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएँ कहते हैं ये दो भागों में बंटे हुए हैं
(i). भारतीय मुद्रा बाजार,
(ii). भारतीय पूंजी बाजार ।
i. भारतीय मुद्रा बाजार भारतीय मुद्रा बाजार को संगठित तथा असंगठित क्षेत्रों में बाँटा गया है । संगठित क्षेत्र में वाणिज्य बैंक, निजी क्षेत्र के बैंक, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक एवं विदेशी बैंक शामिल हैं । जबकि असंगठित क्षेत्रों में देशी बैंकर आते हैं। देश की संगठित बैंकिंग प्रणाली निम्नलिखित तीन प्रकार की बैंकिंग व्यवस्था के रूप में कार्यशील हैं
(क) केन्द्रीय बैंक भारत में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) देश का केन्द्रीय बैंक है । यह देश की शीर्ष बैंकिंग संस्था के रूप में बैंकिंग, वित्तीय और आर्थिक क्रियाओं का दिशा – निर्देश करती है।
(ख) वाणिज्य बैंक वैसे वाणिज्य बैंक जो सरकार के सीचे नियंत्रण में काम करती हैं. राधकीयकत वाणिज्य बैंक कहलाती है तथा ऐसे वाणिज्य बैंक जो सरकार के सीधे नियंत्रण में काम नहीं करती, निजी क्षेत्र की बैंक कहलाती है।
(ग) सहकारी बैंक सहकारिता क्षेत्र में आपसी सहयोग और सद्भावना के आधार पर काम करने वाली वित्तीय संस्थाओं को सहकारी बैंक कहते हैं । ये भी केन्द्रीय बैंक (RBI) के दिशा निर्देशों पर काम करती हैं लेकिन इसका संचालन राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है।
(ii). भारतीय पूंजी बाजार – भारतीय पूँजी बाजार मुख्य रूप से दीर्घकालीन पूँजी उपलव्य करवाती है जिसकी माँग बड़े-बड़े उद्योग घरानों एवं सार्वजनिक निर्माण कार्यों के लिए होती है। भारतीय पूंजी बाजार मुख्यत: चार भागों में विभाजित है
(क) प्रतिभूति बाजार
(ख) औद्योगिक बाजार,
(ग) विकास वित्त संस्थान,
(घ ) गैर बैंकिंग वित्त कम्पनियाँ।
इन वित्तीय संस्थानों के चलते ही राष्ट्र स्तरीय विकास कार्य जैसे- सड़क, रेलवे, अस्पताल, शिक्षण संस्थान, विद्युत उत्पादन संयंत्र एवं बड़े-बड़े निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग संचालित किए जाते हैं । अत : राष्ट्र के निर्माण में इन वित्तीय संस्थानों का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है।
2. राज्य स्तरीय संस्थागत वित्तीय स्रोतों का वर्णन करें।
उत्तर – राज्य में मुख्यतः दो प्रकार की राज्य स्तरीय संस्थागत वित्तीय स्रोत कार्य करती हैं ।
(i) गैर संस्थागत, (ii) संस्थागत।
i.गैर संस्थागत वित्तीय स्रोत गैर संस्थागत वित्तीय स्रोतों में आज भी महाजन गाँवों में ऋण प्रदान करने वाला सबसे लोकप्रिय साधन है । ऐसे महाजन ग्रामीणों को उत्पादन एवं उपयोग संबंधी सभी कार्यों के लिए धन उपलब्ध करवाते हैं। ऋण देने का आधार के लिए व्यक्ति से अमानत स्वरूप उनके जमीन, जेवर – जेवरात व अन्य कीमती सामान , गिरवी के रूप में ले लिए जाते हैं । इस ऋण पर ब्याज की दर सरकारी ब्याज की दर से काफी ज्यादा होती है । महाजन के अतिरिक्त ग्रामीणों को सहज ऋण सुविधा गाँव के अन्य किसानों, रिश्तेदारों इत्यादि से भी व्याज अथवा बिना ब्याज के प्राप्त हो जाता है।
ii. संस्थागत वित्तीय स्रोत
(क) सहकारी बैंक इसके माध्यम से किसानों को अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण की सुविधा मिलती है । हमारे राज्य में सहकारी बैंक द्वारा उपलब्ध सहकारी साख व्यवस्था त्रिस्तरीय है
- गाँवों में प्राथमिक सहकारी साख समितियाँ ।
- जिला स्तर पर केन्द्रीय सहकारी बैंक ।
- राज्य स्तर पर राज्य सहकारी बैंक।
(ख) प्राथमिक सहकारी समितियाँ एक गाँव अथवा क्षेत्र के कोई भी कम से कम दस व्यक्ति मिलकर एक प्राथमिक साख समिति का निर्माण करते हैं । यह समिति सामान्यत: उत्पादक कार्यों के लिए अल्पकालीन ऋण देती है । राज्य के ड्राफ्ट दसवीं पंचवर्षीय योजना के अनुसार बिहार में 6842 प्राथमिक सहकारी साख समितियाँ कार्य कर रही हैं ।
(ग) भूमि विकास बैंक राज्य में किसानों को दीर्घकालीन ऋण प्रदान करने के लिए भूमि के लिए दीर्घकालीन ऋण प्रदान करता है । टैक्टर, पावर टीलर, पंपिग सेट, मकान बनाने, पुराने ऋणों का भुगतान करने कृषि में स्थायी सुधार के लिए 15-20 वर्षों के लिए भूमि विकास बैंक से ऋण प्राप्त होता है।
(घ) व्यावसायिक बैंक देश में बैंकों पर सामाजिक नियंत्रण की नीति (1968) तथा उसके राष्ट्रीयकरण (1969) के बाद व्यवसायिक बैंकों के द्वारा किसानों को अधिक मात्रा में ऋण दिया जाने लगा। व्यवसायिक बैंकों के द्वारा जितनी साख की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है, वह जरूरत के हिसाब से अनुकूल नहीं है । 2000-01 में लक्ष्य का मात्र 44% ही साख प्रदान किया गया । कृषि साख की आवश्यकता 700 करोड़ रुपये से अधिक की थी और उपलब्धता मात्र 548 करोड़ रुपए की हुई।
(च) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की स्थापना 1975 ई. में हुई। इसकी स्थापना का उद्देश्य सीमान्त एवं छोटे किसानों, कारीगरों और अन्य कमजोर वर्ग के लोगों की जरूरतों को पूरा करना था । राज्य में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक जो साख की सुविधा प्रदान करते हैं, उसमें वृद्धि होने के बावजूद छोटे और सीमांत किसानों की जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं । देश में अभी 196 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक हैं, जबकि बिहार में इनकी संख्या 221 है।
(छ) नाबार्ड – नाबार्ड एक ऐसी संस्था है, जो देश में कृषि तथा ग्रामीण विकास के लिए पुनर्वित प्रदान करती हैं। कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिए सरकारी संस्थाओं व्यवसायिक बैंकों तथा क्षेत्रीय ग्रामी बैंकों को वित्त की सुविधा नाबार्ड के द्वारा ही प्रदान की जाती है। बाद में यह सुविधा किसानों को प्राप्त होती है। बिहार राज्य में 1998-99 से 2000-01 के बीच नाबार्ड ने कुल 539.27 करोड़ रुपये का पुनर्वित प्रदान किया।
3.व्यवसायिक बैंक के प्रमुख कार्यों की विवेचना करें।
उत्तर – व्यवसायिक बैंक के कार्य – व्यवसायिक बैंक की हमारे देश में बहुत ही प्रधानता है । ये अर्थव्यवस्था के बहुत महत्वपूर्ण अंग हैं । हम जब बिना किसी विशेषण के बैंक शब्द का प्रयोग करते हैं, तो इसका अर्थ व्यवसायिक बैंक से ही लगाया जाता है । अपने विभिन्न प्रकार के कार्यों के द्वारा व्यवसायिक बैंक देश और समाज को सेवा प्रदान करते हैं । व्यवसायिक बैंक के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं
(i) जमा राशि को स्वीकार करना – अपने ग्राहकों से जमा के रूप में मुद्रा प्राप्त करना व्यवसायिक बैंकों का प्रमुख कार्य है । समाज में लोग अपनी आय का एक अंश बचाकर रखते हैं और चोरी होने के भय से अथवा ब्याज कमाने के उद्देश्य से उन्हें बैंक में रखते हैं । बैंकों के लिए भी ये जमा महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इन्हीं के आधार पर कर्ज देकर वे अपने लाभ का एक प्रमुख भाग प्राप्त करते हैं।’ व्यवसायिक बैंक चार प्रकार के जमा स्वीकार करते हैं
(ii) स्थायी जमा – इस प्रकार के खाते में एक निश्चित अवधि के लिए जैसे -1 वर्ष या उससे अधिक के लिए राशि जमा की जाती है । इस निश्चित अवधि के अन्दर रुपया नहीं निकाला जा सकता है । इस प्रकार के जमा को सावधि जमा भी कहते हैं । इस जमा राशि पर बैंक ब्याज देती है।
(iii) चालू जमा – इस खाते में जमाकर्ता अपनी इच्छानुसार पैसे जमा भी कर सकता है और निकाल भी सकता है। इसमें किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं होता है । इसे माँग जमा भी कहते हैं।
(iv) संचयी जमा – इस प्रकार के खाते में जमाकर्ता अपनी इच्छानुसार रुपए जमा कर सकता है, लेकिन रूपए निकालने का अधिकार सीमित है । रुपए एक निश्चित रकम से अधिक नहीं निकाले जा सकते हैं। इसमें चेक की सुविधा प्रदान की जाती है।
(v) आवर्ती जमा – इस प्रकार के खाते में व्यवसायिक बैंक अपने ग्राहकों से एक निश्चित अवधि के लिए जैसे 60 माह यामाह के लिए निश्चित रकम जमा के रूप में लेती है और बाद में एक निश्चित रकम देती है । इसी प्रकार के जमा का एक रूप है संचयी समयावधि जमा ।हमारी अर्थव्यवस्था 177
(vi) ऋण प्रदान करना लोगों को ऋण प्रदान करना व्यवसायिक बैंक का दूसरा प्रमुख कार्य है । बैंक अपने पास जमा के रूप में आने वाले रुपये में से निश्चित राशि नकद कोष में रखकर बाकी रुपये दूसरे व्यक्तियों को उधार के रूप में दे देते हैं। बैंक दिए गए ऋण पर उचित जमानत की मांग करते हैं, जमानत की मूल्य ऋण की रकम से अधिक होती है। व्यवसायिक बैंक निम्न प्रकार से ऋण प्रदान करते हैं
(क) अभियाचित एवं अल्पकालिक ऋण – इस प्रकार का ऋण बहुत ही कम समय यानि एक दिन से लेकर एक सप्ताह तक के लिए या माँगने पर वापस करने के लिए दिया जाता है । मुद्रा बाजार की संस्थाएँ इस प्रकार का ऋण लेती हैं।
(ख) नकद साख – इस प्रकार की व्यवस्था में ऋण पत्र, व्यापारिक माल अथवा अन्य स्वीकृति प्रतिभूतियों के आधार पर बैंक अपने ग्राहकों को ऋण देते हैं।
(ग) अधिविकर्ष – जब व्यवसायिक बैंक अपने ग्राहकों को उसके खाते में जमा रकम से अधिक रकम निकालने की सुविधा प्रदान करते हैं, तो उसे अधिविकर्ष की सुविधा कहते हैं । निकाले गए अधिक रकम के लिए बैंक अपने ग्राहक से जमानत भी लेती है और इस प्रकार के ऋण पर बैंक सूद भी लेती है ।
(घ) विनिमय बिलों का भुगतान – विनिमय बिलों को भुनाकर भी व्यवसायिक बैंक अपने ग्राहकों को ऋण प्रदान करती है। इसमें बैंक बिलों में से कुछ कटौती कर के बाकी राशि ऋणी को दे देती है । कटौती दर ब्याज दर के समान होती है।
(ड़) ऋण एवं अग्रिम – जब ऋण एक पूर्व निश्चित अवधि के लिए दिया जाता है तो उसे ऋण अथवा अग्रिम कहते हैं। इस प्रकार के ऋण के लिए बैंक जमानत लेता है और ब्याज की दर भी अधिक होती है।
(vii).सामान्य उपयोगिता संबंधी कार्य – व्यवसायिक बैंक अन्य बहुत से कार्य भी करती है, जिन्हें सामान्य उपयोगिता संबंधी कार्य कहा जाता है । जैसे (क) यात्री चेक एवं साख प्रमाण पत्र जारी करना जिसकी सहायता से व्यापारी विदेशों से भी आसानी से माल उधार खरीदते हैं।
(ख) ग्राहकों को लॉकर की सुविधा प्रदान करना जिसमें लोग अपने सोना – चाँदी के जेवर तथा अन्य जरूरी कागजातों को सुरक्षित रख सकें।
(ग) ATM एवं क्रेडिट कार्ड की सुविधा प्रदान करना जिससे खाता धारकों को 24 घंटे घन निकालने की सुविधा हो।
(घ) व्यापारिक सूचनाएँ एवं ऑकड़े एकत्रित करके अपने ग्राहकों को वित्तीय मामलों पर सलाह देना ।
(viii)एजेंसी संबंधी कार्य व्यवसायिक बैंक ग्राहकों को एजेंसी के रूप में भी सुविधा प्रदान करते हैं । इसके ___ अंतर्गत बैंक, चेक / बिल व ड्राफ्ट का संकलन, ब्याज तथा लाभांश का संकलन तथा वितरण, ब्याज / ऋण की किस्त / बीमे की किस्त का भुगतान, प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय का कार्य भी करते हैं।
4.सहकारिता के मूल तत्त्व क्या है? राज्य के विकास में इसकी भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर – सहकारिता का अर्थ होता है एक साथ मिल-जुलकर काम करना । अर्थशास्त्र में इस शब्द का व्यापक प्रयोग होता है “सहकारिता वह संगठन है जिसके द्वारा दो या दो से अधिक व्यक्ति स्वेच्छापूर्वक मिल -जुलकर समान स्तर पर आर्थिक हितों की वृद्धि करते हैं। सहकारिता के तीन मूल तत्त्व होते हैं
(क) सहकारिता में संगठन की सदस्या स्वेच्छिक होती है । इस संगठन के सदस्य लोग अपनी इच्छा से बनते हैं। उनपर कोई दबाव या बंधन नहीं होता है
(ख) सहकारिता का दूसरा मूल तत्व है , इसका प्रबंधव संचालन जो कि जनतंत्रात्मक आधार पर होता है। इसके सदस्यों के बीच पूँजी, हैसियत या किसी अन्य आधार पर आपस में कोई भेद – भाव नहीं होता है । यहाँ सभी को एक जैसे अधिकार व अवसर प्राप्त होते हैं।
(ग) इसका तीसरा मूल तत्व है, इसका आर्थिक उद्देश्यों जिसमें नैतिक और सामाजिक तत्व भी शामिल रहते हैं। इसका उद्देश्य केवल आर्थिक लाभ कमाने के लिए नहीं किया जाता है , बल्कि नैतिक और सामाजिक पहलू से सदस्यों के हित के लिए कार्य करना होता है।
राज्य के विकास में इसकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बिहार एक बहुत पिछड़ा राज्य है । जब बिहार का बँटवारा नहीं हुआ था इसमें बहुत सारे आर्थिक संसाधन थे. लेकिन बँटवारे के बाद सारी संपदा झारखंड में चला गया। बिहार में खेती ही मल साधन है। यहाँ की 80 96 आबादी कृषि पर आश्रित है । बिहार की कृषि मानसून पर आधारित है, इसलिए इसमें पैसा लगाना जुआ के समान माना जाता है । लेकिन आर्थिक तंगी के बावजूद लोग कृषि में निवेश करने के लिए विवश होते हैं। इस कारण कृषि के अतिरिक्त ग्रामीण स्तर पर धनकुट्टी, अगरबत्ती निर्माण, जूता निर्माण, . बीडी निर्माण जैसे महत्वपूर्ण रोजगार सहकारिता के सहयोग से चलायी जा रहे हैं । सहकारी बैंक से ग्रामीण स्तर पर रोजगार को काफी हद तक बढ़ावा मिला है, जिसका जनता पर अनुकूल आर्थिक प्रभाव देखने को मिल रहा है । लोगों की आय धीरे – धीरे बढ़ रही है और उनका जीवन – स्तर ऊँचा उठ रहा है।
5.स्वयं सहायता समूह में महिलाएं किस प्रकार अपनी अहम भूमिका निभाती हैं? वर्णन करें।
उत्तर- स्वयं सहायता समूह वास्तव में ग्रामीण क्षेत्र में 15-20 व्यक्तियों खासकर महिलाओं का एक अनौपचारिक समूह होता है जो अपनी बचत तथा बैंकों से लघु ऋण लेकर अपने सदस्यों की पारिवारिक जरूरतों को पूरा करते हैं तथा विकास की गतिविधियों का संचालन कर गाँवों के विकास तथा महिला सशक्तिकरण में योगदान देते हैं। एक या दो वर्षों के बाद अगर समूह नियमित रूप से बचत करता है तो समूह बैंक से ऋण के योग्य हो जाता है । ऋण समूह के नाम पर प्रदान किया जाता है जिससे स्वरोजगारों के अवसरों का सृजन करते हैं।