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1.संघ राज्य की विशेषता नहीं है
(क) लिखित संविधान (ख) शक्तियों का विभाजन (ग) इकहरी शासन – व्यवस्था (घ) सर्वोच्च न्यायपालिका
उत्तर . इकहरी शासन – व्यवस्था
2. संघ सरकार का उदाहरण है
(क) अमेरिका (ख) चीन (ग) ब्रिटेन (घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर . ( क ) अमेरिका
3.भारत में संघ एवं राज्यों के बीच अधिकारों का विभाजन कितनी सूचियों में हुआ है
(क) संघीय सूची, राज्य सूची (ख) संघीय सूची , राज्य सूची , समवर्ती सूची (ग) संघीय सूची (घ) राज्य सूची
उत्तर . ( ख ) संघीय सूची , राज्य सूची, समवर्ती सूची
निम्नलिखित में कौन-सा कथन सही है?
1. सत्ता में साझेदारी सही है क्योंकि
(क) यह विविधता को अपने में समेट लेती है
(ख) देश की एकता को कमजोर कर देती है
(ग) फैसले लेने में देरी कराती है
(घ) विभिन्न समुदायों के बीच टकराव कम करती है
Ans. (क) यह विविधता को अपने में समेट लेती है
2.संघवाद लोकतंत्र के अनुकूल है।
(क) संघीय व्यवस्था केन्द्र सरकार की शक्ति को सीमित करती है।
(ख) संघवाद इस बात की व्यवस्था करता है कि उस शासन – व्यवस्था के अंतर्गत रहनेवाले लोगों में आपसी सौहार्द्र एवं विश्वास रहेगा । उन्हें इस बात का भय नहीं रहेगा कि एक की भाषा, संस्कृति और धर्म दूसरे पर लाद दी जाएगी।
Ans : (ख) संघवाद इस बात की व्यवस्था करता है कि उस शासन – व्यवस्था के अंतर्गत रहनेवाले लोगों में आपसी सौहार्द्र एवं विश्वास रहेगा । उन्हें इस बात का भय नहीं रहेगा कि एक की भाषा, संस्कृति और धर्म दूसरे पर लाद दी जाएगी।
नीचे स्थानीय स्वशासन के पक्ष में कुछ तर्क दिए गए हैं, इन्हें आप वरीयता के क्रम में सजाएं।
1. सरकार स्थानीय लोगों को शामिल कर अपनी योजनाएँ कम खर्च में पूरी कर सकती है।
2 स्थानीय लोग अपने इलाके की जरूरत, समस्याओं और प्राथमिकताओं को जानते हैं।
3. आम जनता के लिए अपने प्रदेश के अथवा राष्ट्रीय विधायिका के जनप्रतिनिधियों से संपर्क कर पाना मुश्किल होता है।
4. स्थानीय जनता द्वारा बनायी योजना सरकारी अधिकारियों द्वारा बतायी गई योजना में ज्यादा स्वीकृत होती है
Ans. 2,3,4,1
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
1.संघ राज्य का अर्थ वताएँ।
Ans . जब कई स्वतंत्र एवं संप्रभुराज्य आपस में मिलकर सामान्य संप्रभुता को स्वीकार कर एक राज्य का गठन करते हैं तो ऐसे राज्य को संघीय राज्य कहते हैं । जैसे-संयुक्त राज्य अमेरिका, आस्ट्रेलिया आदि।
2. संघीय शासन की दो विशेषताएं बताएँ? संघीय शासन की दो विशेषताएँ –
(i) संघीय शासन व्यवस्था के सर्वोच्च सत्ता केन्द्र सरकार और उसकी विभिन्न इकाइयों में बँट जाती है।
(ii) संघीय व्यवस्था में दोहरी सरकार होती है. एक केन्द्रीय स्तर की सरकार जिसके अधिकार क्षेत्र में राष्ट्रीय महत्व के विषय आते हैं, दूसरे स्तर पर प्रांतीय या क्षेत्रीय स्तर की सरकारें होती हैं जिनके अधिकार में स्थानीय महत्व के विषय होते हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
1.सत्ता की साझेदारी से आप क्या समझते हैं?
Ans. लोकतंत्र में व्यापारी, उद्योगपति, किसान, शिक्षक, औद्योगिक मजदर जैसे संगठित हित समह सरकार की विभिन्न समितियों में प्रतिनिधि बनकर सत्ता में भागीदारी करते हैं या अपने हितों के लिए सरकार पर अप्रत्यक्ष रूप में दबाव डालते हैं । ऐसे विभिन्न समूह जब सक्रिय हो जाते हैं तब किसी एक समूह ऊपर प्रभुत्व कायम नहीं हो पाता । यदि कोई एक समूह सरकार के ऊपर अपने हित के लिए दबाव डालता है तो दूसरा समूह उसके विरोध में दबाव बनाता है कि नीतियाँ इस प्रकार न बनाई जाएँ। इसी प्रक्रिया को सत्ता की साझेदारी कहते हैं । राजनीतिक दल सत्ता की साझेदारी का सबसे जीवंत स्वरूप हैं , विभिन्न दल सत्ता प्राप्त करने के लिए प्रतिस्पर्धा के रूप में कार्य करते हैं । सत्ता की साझेदारी का प्रत्यक्ष रूप तब भी दिखता है जब दो या दो से अधिक पार्टियाँ मिलकर चुनाव लड़ती हैं।
2.सत्ता की साझेदारी लोकतंत्र में क्या महत्व रखती है?
Ans. सत्ता की साझेदारी लोकतंत्र में बहुत महत्व रखती है क्योंकि सत्ता की साझेदारी यह सुनिक्षित करती है कि सत्ता किसी एक खास समूह के हाथ में नहीं रहेगी।
3.सत्ता की साझेदारी के अलग – अलग तरीके क्या हैं?
Ans. लोकतंत्र में सरकार की सारी शक्ति किसी एक अंग में सीमित नहीं रहती है बल्कि सरकार के विभिन्न अंगों के बीच सत्ता का बँटवारा होता है। सरकार की शक्तियों का बँटवारा सरकार के तीन अंगों – विधायिका कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के बीच होता है । सत्ता के ऐसे बँटवारे से किसी एक अंग के पास सत्ता का जमाव एवं उसके दुरुपयोग की संभावना कम हो जाती है तथा नियंत्रण एवं संतुलन की व्यवस्था बनी रहती है। सरकार के एक स्तर पर सत्ता के ऐसे बँटवारे को हम सत्ता का क्षैतिज वितरण कहते हैं । सत्ता की साझेदारी की दूसरी कार्य प्रणाली में सरकार के विभिन्न स्तरों पर सत्ता का बंटवारा होता है । सत्ता के ऐसे बँटवारे को हम सत्ता का ऊर्ध्वाधार वितरण कहते हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1.राजनैतिक दल किस प्रकार से सत्ता में साझेदारी करते हैं?
Ans , राजनैतिक दल सत्ता में साझेदारी का सबसे जीवंत स्वरूप हैं । वे सत्ता के बँटवारे के सशक्त माध्यम होते हैं। राजनैतिक दल लोगों का ऐसा समूह है जो चुनाव लड़ने और राजनैतिक सत्ता हासिल करने के उद्देश्य से काम करता है। उनकी आपसी प्रतिद्वद्विता यह निक्षित करती है कि सत्ता किसी एक के हाथ में न रहे। सत्ता की साझेदारी का प्रत्यक्ष रूप से तब दिखता है जब दो से अधिक पार्टियाँ मिलकर चुनाव लड़ते हैं या सरकार का गठन करते हैं। जब विभिन्न विचारधाराओं, विभिन्न सामाजिक समूहों और विभिन्न क्षेत्रीय और स्थानीय हितों वाले राजनीतिक दल एक साथ एक समय में सरकार के एक स्तर पर सत्ता में साझेदारी करते हैं तो यह सत्ता की साझेदारी का सबसे अद्यतन अर्थात् शुद्ध रूप होता है। लोकतंत्र में विभिन्न हितों एवं नजरिये की अभिव्यक्ति संगठित तरीके से राजनीतिक दलों के अलावा जनसंघर्ष एवं जन आंदोलनों के द्वारा भी होती है । नेपाल में राजशाही व्यवस्था के अंत तथा सत्ता जन निर्वाचित प्रतिनिधियों के हाथ में सौंपने के लिए आंदोलन, बोलिविया का जल युद्ध , महिलाओं के लिए आरक्षण की सुविधा के लिए संघर्ष इत्यादि सत्ता में साझेदारी के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष उदाहरण हैं । लोकतंत्र में सरकार की सारी शक्ति किसी एक अंग में सीमित नहीं रहती बल्कि सरकार के विभिन्न अंगों के बीच सत्ता का बँटवारा होता है। उदाहरण के लिए विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका एक ही स्तर पर अपनी-अपनी शक्तियों का प्रयोग करके सत्ता में साझीदार बनते हैं।
2.गठबंधन की सरकारों में सत्ता में साझेदार कौन – कौन होते हैं?
Ans . गठबंधन की सरकारों में सत्ता में साझेदार विभिन्न राजनीतिक दल होते हैं
3.दवाव समूह किस तरह से सरकार को प्रभावित कर सत्ता में साझेदार बनते हैं?
Ans. लोकतंत्र में व्यापारी, उद्योगपति , किसान, शिक्षक, औद्योगिक मजदूर जैसे संगठित समूह सरकार की विभिन्न समितियों में प्रतिनिधि बनकर सत्ता में भागीदारी करते हैं या अपने हितों के लिए सरकार पर अप्रत्यक्ष रूपसे दबाव डालकर उनके फैसलों को प्रभावित कर सत्ता में अप्रत्यक्ष रूप से साझेदार बनते हैं यदि कोई एक समय सरकार के ऊपर अपने हित के लिए नीति बनाने के लिए दबाव डालता है तो दूसरा समूह उसके विरोध में दबाव डालता है कि नीतियाँ इस प्रकार न बनाई जाएँ । ऐसे विभिन्न समूहों के सक्रिय रहने पर किसी एक समूह का समाज के ऊपर प्रभुत्व स्थापित नहीं हो पाता।
4.संघीय शासन की विशेषताओं का वर्णन करें।
Ans. संघीय शासन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं बीच बैट जाती है
(i). संघीय शासन व्यवस्था के सर्वोच्च सत्ता केन्द्र सरकार और उसकी विभिन्न इकाइयों के बीच बट जाती है।
(ii). संघीय व्यवस्था में दोहरी सरकार होती है एक केन्द्रीय स्तर की सरकार जिसके अधिकार में विषय होते हैं तथा दूसरे स्तर पर प्रांतीय या क्षेत्रीय सरकारें होती हैं जिनके अधिकार क्षेत्र में स्थानीय महत्व के विषय होते हैं। लोगों के प्रति जवाबदेह या उत्तरदायी होती है।
(iii). प्रत्येक स्तर की सरकार अपने क्षेत्र में स्वायत्त होती है और अपने – अपने कार्यों के लिए लोगों के प्रति जवाबदेह या उत्तरदाई होती है।
(iv). अलग-अलग स्तर की सरकार एक ही नागरिक समूह पर शासन करती है।
(v). नागरिकों की दोहरी पहचान एवं निष्ठाएँ होती हैं, वे अपने क्षेत्र के भी होते हैं और राष्ट्र के भी।
(vi) दोहरी स्तर पर शासन की विस्तृत व्यवस्था एक लिखित संविधान के द्वारा की जाती है।
(vii).स्तरों की सरकारों क अधिकार संविधान में स्पष्ट रूप से लिखे रहते हैं । इसलिए यह दोनों सरकारों के अधिकारों और शक्तियों का मूल स्रोत होता है।
(viii). संविधान के मूल प्रावधानों को किसी एक स्तर की सरकार अकेले नहीं बदल सकती है।
(ix). एक स्वतंत्र न्यायपालिका की व्यवस्था की जाती है। संविधान एवं विभिन्न स्तरों की सरकारों के अधिकारों की व्यवस्था करने का भी अधिकार होता है तथा यह केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच अधिकारों और शक्ति के बंटवारे के संबंध में उठनेवाले कानूनी विवादों को भी हल करता है।
5. केन्द्र सरकार की स्थिति को स्पष्ट करें।
Ans . केन्द्र सरकार को शक्तिशाली स्थिति को हम निम्नलिखित तरीके से समझ सकते हैं
(i). किसी राज्य के अस्तित्व और उसकी भौगोलिक सीमाओं के स्थायित्व पर संसद का नियंत्रण है, वह किसी राज्य की सीमा या नाम में परिवर्तन कर सकती है पर इस शक्ति का दुरुपयोग रोकने के लिए प्रभावित राज्य के विधान मंडल को भी विचार व्यक्त करने का अवसर प्रदान किया गया है।
(ii). संविधान में केन्द्र को अत्यंत शक्तिशाली बनानेवाले कछ आपातकालीन प्रावधान हैं जिसके लागूपुर वह हमारी संघीय व्यवस्था को केन्द्रीकृत व्यवस्था में बदल देते हैं। आपातकालीन समय के दौरान शक्तियाँ केन्द्रीयकृत हो जाती हैं।
(iii). सामान्य स्थितियों में भी केन्द्र सरकार को अत्यंत प्रभावी वित्तीय शक्तियाँ एवं उत्तरदायित्व प्राप्त हैं। आय के प्रमुख संसाधनों पर केन्द्र का नियंत्रण है । केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त योजना आयोग राज्यों के संसाधनों एवं इनके प्रबंधन की निगरानी करता है।
(iv). राज्यपाल , राज्य विधानमंडल द्वारा पारित किसी विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए तथा राज्य सरकार को हटाने तथा विधान सभा भंग करने की सिफारिश भी राष्ट्रपति को भेज सकता है।
(v). विशेष परिस्थिति में केन्द्र सरकार, राज्य सूची के विषयों पर भी कानून बना सकती है।
(vii). भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था इकहरी है। इसमें चयनित पदाधिकारी राज्यों के प्रशासन का कार्य करते हैं लेकिन राज्य उनके विरुद्ध न तो कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकते हैं न ही हटा सकते हैं।
6.केन्द्र राज्य संबंधों पर एक टिप्पणी लिखें।
Ans. केन्द्र एवं राज्य के बीच के संबंधों में तनाव एवं सहयोग दोनों का समावेश होता है । केन्द्र की स्थिति शक्तिशाली होती है लेकिन राज्यों की पहचान को भी मान्यता मिली हुई है। अत : केन्द्र और राज्यों के बीच का संबंध संघीय व्यवस्था के सफल कार्यान्वयन की कसौटी का कार्य करते हैं। काफी समय तक हमारे यहाँ एक पार्टी का वर्चस्व रहा । अतः इस दौरान केन्द्र राज्य संबंध सामान्य रहे । जब केन्द्र तथा राज्यों में अलगअलग दल की सरकारें थीं तो केन्द्र सरकारों ने राज्यों की अनदेखी करनी शुरू कर दी। अतः राज्यों ने केन्द्र सरकार की शक्तियों का विरोध करना शुरू कर दिया तथा राज्यों को और स्वायत्तता एवं शक्तियाँ देने की मांग की। 1980 के दशक में केन्द्रीय सरकार ने जम्मू एवं आंध्र की निर्वाचित सरकार को बर्खास्त कर दिया। यह संघीय भावना के प्रतिकूल कार्य था । भारतीय संघीय व्यवस्था में राज्यपाल की भूमिका केन्द्र और राज्यों के बीच हमेशा से विवाद का विषय रहती थी। राज्यपाल की नियुक्ति केन्द्र सरकार द्वारा होती है , अत: राज्यपाल के फैसलों को राज्य सरकार के कार्यों में हस्तक्षेप के रूप में देखा जाता है। 1990 के बाद स्थिति में परिवर्तन आया । काँग्रेस का वर्चस्व कम हुआ तथा गठबंधन की राजनीति का उदय हुआ। अर्थात् जब किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिले तो राष्ट्रीय पार्टियों को क्षेत्रीय दलों समेत अनेक पार्टियों का गठबंधन बनाकर सरकार बनानी पड़ती है। इससे सत्ता में साझेदारी का विकास होता है।
7.ग्राम पंचायत की व्यवस्था पर टिप्पणी लिखें।
Ans. बिहार में ग्राम पंचायत ग्रामीण क्षेत्रों की संस्थाओं में सबसे नीचे का स्तर है। राज्य सरकार 7000 को औसत आबादी पर ग्राम पंचायतों को स्थापना करती है। एक पंचायत क्षेत्र ग्राम पंचायतों का प्रधान मुखिया होता है हर पंचायत में सरकार की ओर से एक पंचायत सेवक नियुक्त होते हैं, जो सचिव की भूमिका निभाते हैं। प्रत्येक ग्राम पंचायत में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़े वर्ग के लिए उनकी जनसंख्या 2006 के तहत महिलाओं के लिए संपूर्ण सीटों में 50 % आरक्षण की व्यवस्था होती है । यदि ग्राम पंचायतों के सदस्य दो-तिहाई बहुमत से मुखिया के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित हो तो मुखिया अपने पद से हटाये जा सकते हैं। ग्राम पंचायत के सामान्य कार्य होते हैं
(i) पंचायत क्षेत्र के विकास के लिए वार्षिक योजना तथा वार्षिक बजट तैयार करना ।
(ii) प्राकृतिक विपदा में स्वैच्छिक श्रमिकों को संगठित करना और सामुदायिक कार्यों में सहयोग देना। सहायता करने का कार्य।
(iii) सार्वजनिक संपत्ति से अतिक्रमण हटाना ।
(iv) स्वैच्छिक श्रमिकों को संगठित करना और सामुदायिक कार्यों में सहयोग देना।
ग्राम पंचायत की शक्तियाँ
(i) सम्पत्ति अर्जित करने धारण करने और उसके निपटने की तथा उसकी संविदा करने की शक्ति।
(ii) करारोपण , मेलों – हाटों में प्रबंध कर, वाहनों के निबंधन पर फीस तथा क्षेत्राधिकार में चलाए व्यवसाय नियोजनों पर कर।
(ii) राज्य वित्त आयोग की अनुशंसा पर संचित निधी से सहायक अनुदान प्राप्त करने का अधिकार है |
8.पंचायत समिति क्या है? उसके कार्यों का वर्णन करें।
Ans. पंचायत समिति , पंचायती राज व्यवस्था का दूसरा या मध्य स्तर है । यह ग्राम पंचायत तथा जिला परिषद के बीच की कड़ी है। बिहार में 5000 की आबादी पर पंचायत समिति का एक सदस्य चुने जाने का प्रावधान है । पंचायत समिति का प्रधान अधिकारी प्रमुख कहलाता है । वह समिति की बैठक बुलाता है तथा उसकी अध्यक्षता करता है । वह पंचायतों का निरीक्षण करता है तथा अन्य महत्वपूर्ण का संपादन करता है। पंचायत समिति के कार्य पंचायत समिति सभी ग्राम पंचायतों को वार्षिक योजनाओं पर विचार – विमर्श करती हे तथा समेकित योजना को जिला परिषद् में प्रस्तुत करती है । यह ऐसे कार्यकलापों का संपादन एवं निष्पादन करती है जो राज्य सरकार या जिला परिषद् इसे सौंपती है । इसके अतिरिक्त , सामुदायिक विकास कार्य एवं प्राकृतिक आपदा के समय राहत का प्रबंध करना भी इसकी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है । पंचायत समिति अपने अधिकांश कार्य स्थायी समितियों द्वारा करती है।
9.जिला परिषद् तथा उसके कार्यों का वर्णन करें।
Ans . बिहार में जिला परिषद् पंचायती राज व्यवस्था का तीसरा स्तर है। 50000 की आबादी पर जिला परिषद् का एक सदस्य चुना जाता है । ग्राम पंचायत और पंचायत समिति की तरह इसमें भी महिलाओं, अनुसूचित जाति एवं जनजातियों, पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था है। इसका कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। जिले की सभी पंचायत समितियों के प्रमुख सदस्य होते हैं। प्रत्येक जिला परिषद् का एक अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष होता है। उनका निर्वाचन जिला परिषद् के सदस्य अपने सदस्यों के बीच से पंचायती राज व्यवस्था को सुदृढ़ और शक्तिशाली बनाने के लिए प्रेरित करते हैं । पंचायती राज संस्थानों के विघटन की स्थिति में 6 माह के अंदर चुनाव करवाना जरूरी होता है। बिहार पंचायती राज अधिनियम 2005 के द्वारा महिलाओं के लिए संपूर्ण सीटों में आधी सीट अर्थात् 50 % आरक्षण की व्यवस्था है । इसके अलावा अनुसूचित जाति, जनजाति एवं अत्यंत पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था की गई है।
10. नगर परिषद के कार्यों का वर्णन करें।
Ans. नगर परिषद् को दो प्रकार के कार्य करने पड़ते हैं अनिवार्य एवं ऐच्छिक । अनिवार्य कार्य वे हैं जिन्हें नगर परिषद को करना जरूरी होता है । ऐच्छिक कार्य ऐसे कार्य हैं जिन्हें नगर परिषद अपनी इच्छानुसार अथवा आवश्यकतानुसार करता है। नगर परिषद् के अनिवार्य कार्य निम्नलिखित हैं
(i) नगर की सफाई कराना।
(ii) सड़कों एवं गलियों में रोशनी का प्रबंध कराना ।
(iii) पीने के पानी की व्यवस्था करना।
(iv) सड़क बनाना तथा उसकी मरम्मत करना ।
(v) नालियाँ की सफाई करना।
(vi) प्राथमिक शिक्षा का प्रबंध कराना जैसे स्कूल चलाना ।
(vil) टकि लगाने तथा महामारी से बचाव का उपाय करना।
(vil ) मनुष्यों एवं पशुओं के लिए अस्पताल खोलना |
(ix) आय से सुरक्षा करना ।
(x) श्मशान घाट का प्रबंध करना।
(xi ) जन्म एवं मृत्यु का निबंधन करना एवं लेखा – जोखा करना।
ऐच्छिक कार्य
(i). नई सड़क बनाना ।
(ii). गलियाँ एवं नालियाँ बनाना ।
(iii). शहर के गंदे इलाकों को बसने योग्य बनाना ।
(iv). गरीबों के लिए घर बनवाना ।
(v). बिजली का प्रबंध करना ।
(vi). प्रदर्शनी लगाना ।
(vii). पार्क, बगीचा एवं अजायबघर बनाना ।
(viii). पुस्तकालय एवं वाचनालय आदि का प्रबंध करना।
11.नगर निगम के प्रमुख कार्यों का वर्णन करें।
Ans. नगर निगम नागरिकों की स्थानीय आवश्यकता एवं सुख – सुविधा के लिए अनेक कार्य करता है । नगर निगम के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं
(i) नगर क्षेत्र की नालियाँ, पेशाबखाना, शौचालय आदि का निर्माण । करना एवं उसकी देखभाल करना ।
(ii) कूड़ा-कर्कट तथा गंदगी की सफाई करना ।
(iii) पीने के पानी का प्रबंध करना ।
(iv) गलियों, पुलों एवं उद्यानों की सफाई एवं निर्माण करना ।
(v) मनुष्यों तथा पशुओं के लिए चिकित्सा केन्द्र की स्थापना करना एवं छुआ-छूत जैसी विकारों पर रोक ।
(vi) प्रारंभिक स्तरीय सरकारी विद्यालयों, पुस्तकालयों, अजायबघर की स्थापना तथा व्यवस्था करना ।
(vii) विभिन्न कल्याण केन्द्रों जैसे मृत केन्द्र, शिशु केन्द्र, वृद्धाश्रम की स्थापना एवं देखभाल करना ।
(vill) खतरनाक व्यापारों की रोकधाम , खतरनाक जानवरों तथा पागल कुत्तों को मारने का प्रबंध करना ।
(ix) दुग्धशाला की स्थापना एवं प्रबंध करना ।
(x) आग बुझाने का प्रबंध करना ।
(xi ) मनोरंजन गृह का प्रबंध करना ।
(xii ) जन्म, मृत्यु पंजीकरण का प्रबंध करना ।
(xiii ) नगर की जनगणना करना ।
(xiv) नए बाजारों का निर्माण करना ।
(xv ) नगरों में बस चलवाना ।
(xvi) श्मशानों एवं कब्रिस्तानों की देखभाल करना ।
(xvii) गृह उद्योग तथा सहकारी भंडारों की स्थापना करना।
12.निम्नलिखित में से किसी एक कथन का समर्थन करते हुए 50 शब्दों में उत्तर दें।
(i) हर समाज में सत्ता की साझेदारी की जरूरत होती है, भले ही वह छोटा हो या उसमें सामाजिक विभाजन नहीं हो।
(ii) सत्ता की साझेदारी की जरूरत क्षेत्रीय विभाजन वाले देशों में होती है । में ही होती है। \
(iii) सत्ता की साझेदारी की जरूरत क्षेत्रीय, भाषायी, जातीय आधार पर विभाजन वाले समाज
Ans. (ii) सत्ता की साझेदारी की जरूरत क्षेत्रीय विभाजन वाले देशों में होती है । इसे हम अपने देश भारत के परिदृश्य में देख सकते हैं। भारत भोगोलिक दृष्टिकोण से काफी विशाल एवं जाति, धर्म, भाषा, संस्कृति के दृष्टिकोण से विविधताओं से भरा देश है। ऐसे देश में लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना के लिए इन विविधताओं को । पहचान देना आवश्यक था । विभिन्न क्षेत्रों और भाषा – भाषी लोगों की सत्ता में सहभागिता की व्यवस्था करनी थी ताकि सबों को सत्ता में साझेदारी करने का अवसर मिले । इसके लिए शासन की शक्तियों को स्थानीय और केन्द्रीय सरकारों के बीच बॉटने की व्यवस्था जरूरी थी जो की संघीय शासन-व्यवस्था में ही संभव था । भारत लंबे समय से विदेशी शासन के अधीन रहा । अतः सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक दृष्टिकोण से यह सक्षम नहीं था। अगर भारत कई छोटे- छोटे राज्यों में एकात्मक सरकार की स्थापना करता तो संभवत : वे साम्राज्यवादी शक्तियों से अपनी रक्षा नहीं कर पाते । अत:देश में संघीय शासन की स्थापना आवश्यक था।