अध्याय:1 भारत:भूमि और लोग(Class-10,Geography)

वस्तुनिष्ठ प्रश्न:

(i) कोयला किस प्रकार का संसाधन है ?

(क) अनवीकरणीय ( ख ) नवीकरणीय (ग) जैव ( घ) अजैव

उत्तर-(क)

(ii) सौर ऊर्जा निम्नलिखित में से कौन-सा संसाधन है ?

( क) मानवकृत ( ख ) पुनः पूर्तियोग्य (ग) अजैव ( घ) अचक्रीय

उत्तर-(ख)

(iii) तट रेखा से कितने किमी क्षेत्र सीमा अपवर्जक आर्थिक क्षेत्र कहलाता है?

(क) 100 ( ख ) 200 (ग) 150 ( घ) 250

उत्तर- (ख)

(iv) डाकू की अर्थव्यवस्था का संबंध है

(क) संसाधन संग्रहण से ( ख ) संसाधन के विदोहन से (ग) संसाधन के नियोजित दोहन से ( घ) इनमें से कोई नहीं

उत्तर-(ख)

(v) समुद्री क्षेत्र में राजनीतिक सीमा से कितनी किमी दूरी तक का क्षेत्र राष्ट्रीय संपदा में निहित है

(क) 10.2 ( ख ) 15.5 (ग) 12.2 (घ) 19.2

उत्तर- (घ)

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. संसाधन को परिभाषित कीजिए।

उत्तर – प्रकृति में पाए जानेवाले सभी पदार्थ जो उपलब्ध प्रौद्योगिकी के आधार पर मानवीय आवश्यकताओं को पूर्ण करने की क्षमता रखता है, संसाधन कहलाता है ।  जैसे— सूर्य किरण , हवा , पानी , जीव – जंतु, खनिज पदार्थ इत्यादि । मानव के सामाजिक – आर्थिक विकास में संसाधनों का अमूल्य योगदान होता है।

2. संभावी और संचित कोष संसाधनों के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – किसो क्षेत्र में पाए जाने वाले ऐसे संसाधन जिनका उपयोग वर्तमान में किसी कारण विशेष से नहीं किया जाता है, परंतु भविष्य में इनके उपयोग की पूरी संभावनाएँ होती हैं, संभावी संसाधन कहलाते हैं । जैसे राजस्थान एवं गुजरात की पवन एवं सौर – ऊर्जा । ऐसे संसाधन जिसके उपयोग की जानकारी होती है परंतु अभी इसका उपयोग प्रारंभ नहीं हुआ है । भविष्य को पूँजी वाले ऐसे संसाधनों को संचित संसाधन कहा जाता है। जैसे भारत में थोरियम द्वारा बिजली पैदा करना।

3. संसाधन-संरक्षण की उपयोगिता पर प्रकाश डालें।

उत्तर – विश्व स्तर पर संसाधनों का वितरण काफी विषम है। किसी प्रदेश में संसाधन विशेष की अधिकता है तो दूसरे प्रदेश में इसकी कमी होती है जबकि प्रदेश के सर्वांगीण विकास के लिए संसाधनों की जरूरत होती है । विकास के नाम पर मानव ने संसाधनों का अविवेकपूर्ण एवं अनियोजित उपयोग किया है । परिणामस्वरूप, कई पर्यावरणीय समस्याएँ उभरने लगी हैं। साथ ही, कई संसाधन समाप्ति के कगार तक पहुँच चुके हैं। इसलिए , भविष्य में विकास के लिए और विशेषकर सतत् विकास के लिए संसाधनों का संरक्षण जरूरी है, उपयोगी है।

4. संसाधन – निर्माण में तकनीक की भूमिका को स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर – प्रकृति द्वारा दिए गए पदार्थों को उपयोग में लाना कई कारकों पर निर्भर करता है। सबसे पहले किसी पदार्थ का उपयोग जानना जरूरी होता है । फिर उस पदार्थ की आवश्यकता महसूस होनी चाहिए । आवश्यकत्ता में वृद्धि के अलावा तकनीकी ज्ञान में बढ़ोतरी होना भी जरूरी है। उचित संभावनाओं और सुविधाओं के बावजूद संसाधन – निर्माण हेतु तकनीकी ज्ञान होना आवश्यक होता है । उदाहरण के लिए, पृथ्वी के गर्भ में छिपे खनिज , संसाधन का रूप तभी ले पाया जब उसके उपयोग की तकनीकी विकसित कर ली गई। गिरते हए जल से विदयुत पैदा करने की तकनीक विकसित होने के बाद ही जल संसाधन के महत्व में वृद्धि आई अन्यथा यह यूँ ही बहकर बर्बाद हो जाता ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर:

1. संसाधन के विकास में “ सतत् विकास की अवधारणा को स्पष्ट करें।

उत्तर – उपभोगवादी संस्कृति तथा आर्थिक विकास के दौर में मानव द्वारा संसाधनों का अति दोहन किया गया है। क्योंकि वर्तमान समय में विकास का मापदंड आर्थिक विकास से है । संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के कारण 1960 में कई यूरोपीय देशों और अमेरिका में इसके दुष्परिणाम सामने आने लगे । इसी बीच 1968 ई. में द पोपुलेशन बम नामक पुस्तक एहरलिन को प्रकाशित हुई तथा 1972 ई. में ‘द लिमिट टू ग्रोथ ‘ नामक पुस्तकों के प्रकाशन से पर्यावरणविदों का ध्यान आकर्षित हुआ । अंततः संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा विश्व पर्यावरण विकास आयोग का गठन कर गरो हरलेष बूटलैंड को इसका अध्यक्ष बनाया गया। इन्होंने सारी समस्याओं का अध्ययन कर 1987 ई. में आवर कॉमन फ्यूचर’ नामक रिपोर्ट पेश की जिसमें सतत् पोषणीय विकास’ पर जोर दिया गया । सतत विकास , विकास की ऐसी अवधारणा है जिसमें आनेवाली पीढियों को ध्यान में रखकर पर्यावरण को क्षति पहुँचाए बिना वर्तमान में विकास करने पर बल दिया गया है । यही कारण है कि विश्व स्तर पर आज सतत विकास की अवधारणा पर जोर दिया जाने लगा है । भारत और बिहार के संदर्भ में सतत विकास के लिए कई सुझाव दिए जाने लगे हैं । सतत विकास के लिए संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग होना जरूरी है। जिसके लिए संसाधनों का नियोजन भी आवश्यक है । संसाधनों का उपयोग इस प्रकार होना चाहिए जिससे पूरे प्रदेश का संतुलित आर्थिक विकास संभव हो सके।

2. स्वामित्व के आधार पर संसाधन के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।

उत्तर – संसाधन किसी भी देश के आर्थिक – सामाजिक विकास की कुंजी है। सामान्यत : संसाधन का तात्पर्य ‘प्राकृतिक संसाधन से लिया जाता है। परंतु प्रकृति में उपलब्ध सभी पदार्थ जिसमें मानवीय आवश्यकताओं एवं इच्छाओं को पूरा करने की क्षमता होती है, संसाधन कहलाता है । यह संसाधन कई प्रकार का होता है। इसलिए संसाधनों का वर्गीकरण के कई आधार हैं । इन आधारों में उत्पत्ति , उपयोगिता , विकास एवं स्वामित्व शामिल है । स्वामित्व के आधार पर संसाधन के चार प्रकार होते हैं

(i) व्यक्तिगत संसाधन – जो संसाधन किसी व्यक्ति विशेष के अधिकार क्षेत्र में होता है , व्यक्तिगत संसाधन कहलाता है। ऐसे संसाधनों के बदले व्यक्ति सरकार को कर भी चुकता करता है । जैसे – भूखंड , मकान , बाग – बगीचा , तालाब इत्यादि ।

(ii) सामुदायिक संसाधन – जब कोई संसाधन व्यक्ति विशेष का न होकर पूरे समुदाय के अधिकार क्षेत्र में होता है तब उसे सामुदायिक संसाधन कहा जाता है। ऐसे संसाधनों का उपयोग समूह या समुदाय के लिए सुलभ होता है । जैसे – पंचायत भवन, सामुदायिक भवन, मंदिर, मस्जिद, श्मशान भूमि , चारण भूमि, तालाब , विद्यालय, पार्क , खेल मैदान इत्यादि ।

(iii) राष्ट्रीय संसाधन – वैधानिक तौर पर किसी देश में उपलब्ध सभी प्रकार के संसाधनों को राष्ट्रीय संसाधन कहा जाता है। प्राचीन काल में इन संसाधनों पर राजाओं का अधिकार होता था । वर्तमान समय में यह अधिकार सरकार के पास है । राष्ट्रीय महत्त्व के निर्माण कार्यों जैसे सड़क मार्ग । रेलमार्ग, नहर बनाने, कारखाना स्थापित करने अथवा कार्यालय भवनों इत्यादि के लिए सरकार द्वारा निजी अथवा सामुदायिक संसाधनों का अधिग्रहण कर लिया जाता है तब वह राष्ट्रीय संसाधन बन जाता है । तटीय भाग से समुद्र में 19.2 किलोमीटर दूर तक का भाग राष्टीय संसाधन का अंग माना जाता है।

(iv) अंतर्राष्ट्रीय संसाधन – सागर तट से 19.2 किलोमीटर के आगे एवं 200 किलोमीटर तक का समुद्री क्षेत्र संबंधित देश का आर्थिक अपवर्जक क्षेत्र होता है । इसके आगे पाया जानेवाला संसाधन अंतर्राष्ट्रीय संसाधन कहलाता है जिसके इस्तेमाल के लिए अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की अनुमति लेनी पड़ती है।

(क) प्राकृतिक संसाधन (भूमि एवं मृदा संसाधन)

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर :

1. पंजाब में भूमि निम्नीकरण का मुख्य कारण क्या है?

( क ) वनोन्मूलन ( ख ) गहन खेती (ग ) अति पशुचारण ( घ) अधिक सिंचाई

उत्तर- (घ)

2. सोपानी कृषि किस राज्य में प्रचलित है ?

( क ) हरियाणा ( ख ) बिहार का मैदानी क्षेत्र ( ग ) उत्तराखंड (घ) पंजाब

उत्तर- (ग)

3. मरुस्थलीय मदा का विस्तार किस राज्य में है?

(क) राजस्थान ( ख ) उत्तर प्रदेश (ग) कर्नाटक (घ)महाराष्ट्र

उत्तर-(क)

4. मेढक के प्रजनन को कौन-सा रसायन नष्ट करता है?

( क ) बेंजीन ( ख ) एंड्रिन (ग) यूरिया ( घ) फास्फोरस

उत्तर-(ख)

5. काली मृदा का दूसरा नाम क्या है ?

( क ) बलुई मिट्टी ( ख) रेगुर (ग) अखरोटी मिट्टी (घ) पर्वतीय मिट्टी

उत्तर- (ख)

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर :

1. जलोढ़ मिट्टी के विस्तार वाले राज्यों के नाम लिखें । इस मृदा में कौन – कौन सी फसलें लगाई जा सकती हैं?

उत्तर – भारत में जलोढ़ मिट्टी का विस्तार उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा , उडीसा, आंध्र प्रदेश, असम , गुजरात एवं राजस्थान के कुछ हिस्सों में पाया जाता है। इस मृदा में चावल , गेहूं , गना , दलहन, मक्का जैसी फसलें लगाई जा सकती हैं।

2. समोच्च कृषि से आप क्या समझते हैं?

उत्तर – पहाड़ी ढालों पर समोच्च रेखाओं के समानान्तर तैयार की गई भूमि पर की जानेवाली कृषि को समोच्च । कृषि कहा जाता है।

3. पवन अपरदन वाले क्षेत्र में कृषि की कौन – सी पद्धति उपयोगी मानी जाती है?

उत्तर – पवन अपरदन वाले क्षेत्र में पट्टिका कृषि पद्धति उपयोगी है।

4. भारत के किन भागों में नदी डेल्टा का विकास हुआ है? यहाँ के मदा की क्या विशेषता है?

उत्तर भारत के पूर्वी तटीय भाग में नदी डेल्टा का विकास हुआ है । यहाँ मृदा के कण का आकार काफी महीन होता है।

5. फसल चक्रपा मृदा संरक्षण में किस प्रकार सहायक है?

उत्तरः – फसल चक्रण द्वारा मिट्टी के पोषणीय स्तर को बढ़ाया या स्थिर रखा जाना संभव होता है, जिससे मृदा का संरक्षण हो जाता है। उदाहरण के लिए, गेहूँ , कपास, मक्का इत्यादि फसलों को लगातार उगाने से मृदा का पोषणीय स्तर गिरता जाता है। इसे तिलहन या दलहन पौधों की खेती कर पुनः प्राप्त किया जाता है। इस प्रक्रिया से नाइट्रोजन का स्थिरीकरण भी होता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न:

1. जलाक्रांतता कैसे उत्पन्न होती है? मृदा अपरदन में इसकी क्या भूमिका है?

उत्तर – भारत में मृदा अपरदन के लिए कई कारक जिम्मेवार हैं। जिसमें जल भी शामिल है । वास्तव में, हरित क्रांति का आधार अधिक उपज को प्राप्त करना रहा है। इस उद्देश्य से देश के उत्तरी भाग और विशेषकर पंजाब – हरियाणा जैसे राज्यों में गेहूँ अधिक पैदावार प्राप्त करने की कोशिश की गई। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी इस दृष्टि से कृषि के नए प्रयास किए गए। इसके लिए खेतों में अधिक उपज देनेवाले उन्नत किस्म के बीजों और रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के साथ ही साथ सिंचाई सुविधाओं में भी विस्तार किया गया । कालांतर में इन क्षेत्रों में अधिक सिंचाई से ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई जिससे यहाँ की कृषि भूमि का निम्नीकरण होता गया है। पंजाब, हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में अति सिंचाई से उत्पन्न भूमि की स्थिति की ही जलाक्रांतता’ की संज्ञा दी गई है जिससे मदा का अपरदन हआ है। जलाक्रांतता के कारण मिट्टी के लवणीय एवं क्षारीय गुणों में वृद्धि होती गई है जो भूमि के निम्नीकरण के लिए उत्तरदायी है। इन क्षेत्रों की कृषि भूमि में सोडियम, कैल्सियम और मैग्नीशियम के यौगिकों के कारण मिट्टी लवणीय या क्षारीय हो गई है जिससे इनकी उर्वरा शक्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है । फलत: ये उपजाऊ कृषि भूमि रेह , बंजर या ऊसर भूमि में बदलते जा रहे हैं।

2. मृदा – संरक्षण पर एक निबंध लिखिए।

उत्तर भारतीय मिट्टी से संबंधित समस्याओं में मिट्टी कटाव एवं निम्नीकरण को समस्या सर्वप्रमुख है । जिसके कारण मिट्टी की उर्वरता दुष्प्रभावित हो रही है । मृदा एक अमूल्य संसाधन है, जिससे मानवीय जीवन प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा है। परंतु मृदा से संबंधित समस्या की गंभीरता को देखते हुए यह आवश्यक है कि मृदा संरक्षण पर बल दिया जाए। मिट्टी कटाव तथा भूमि के स से मिट्टी की उर्वरता में आनेवाली कमी को रोकने की क्रिया मृदा संरक्षण कहलाती है। संपूर्ण भारत आज मिट्टी कटाव एवं उर्वरता हास की समस्या से ग्रसित है। पर्वतीय भागों में तेज वर्षा से बहता पानी मिट्टी कटाव करता है । मध्यवर्ती एवं इसके आसपास के राज्यों में अपनालिका अपरदन सामान्य घटना है। ऐसी स्थिति में मृदा संरक्षण के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं।

इनमें कुछ प्रमुख हैं-

(i) नदियों पर बाँध बनाना ।

(ii) रासायनिक उर्वरकों की जगह जैविक खाद का प्रयोग करना ।

(iii) पर्वतीय भागों में सीढ़ीनुमा कृषि,समोच्च कृषि करना ।

(iv) फसल – चक्र पद्धति अपनाने पर बल देना ।

(v) परती छोड़ने की स्थिति में मिट्टी में आवरण फसलें लगाना ।

(vi) कृषि वानिकी एवं सामाजिक वानिक पर जोर देना ।

(vii) खेतों से जल निकास की उचित व्यवस्था करना ।

(viii ) झूम कृषि पर प्रतिबंध लगाना ।

(ix) भूमि उपयोग से संबंधित नियोजित एवं वैज्ञानिक पद्धति अपनाना।

देश में मृदा संरक्षण के लिए भारत सरकार ने केन्द्रीय संरक्षण बोर्ड का गठन 1953 ई. में किया जो पूरे देश में मृदा संरक्षण की योजनाएँ बनाता है तथा सुझाव भी देता है। इन्हीं सुझावों के कारण झाबुआ जिले का सुखोमाजरी गाँव खुशहाल बन चुका है।

3.भारत में अत्यधिक पशुधन होने के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था में इसका योगदान लगभग नगण्य है । स्पष्ट करें।

उत्तर – प्राचीन काल से भारत चावल की कृषि का देश है। यहाँ मॉनसूनी जलवायु की विशेषताएँ पाई जाती हैं। देश के अधिकांश लोगों का जीवन – यापन खेती से ही चलता है जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था एवं समाज में कृषि का योगदान स्पष्ट है । एक विकासशील राष्ट्र होने के कारण देश के भूमि उपयोग में क्रांतिकारी। परिवर्तन आ रहा है। 1960-61 से लेकर 2000-01 की अवधि के दौरान देश की भूमि उपयोग प्रारूप में कई विविधताएँ आयी हैं। यही नहीं पशुओं के चरने के लिए चारागाह भूमि की उपलब्धता दिन – प्रतिदिन घटती जा रही है। साथ ही औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण बढ़ते प्रदूषण की मात्रा से संपूर्ण जीव जगत त्रस्त है। यही कारण है कि भारत में पशुधन की संख्या काफी अधिक है। विश्व के अग्रणी देशों में इस दृष्टि से भारत का स्थान आता है। परंतु स्थायी चारागाह की भूमि उपलब्धता में कमी आने के कारण इन्हें पर्याप्त चारा उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। साथ ही कृत्रिम तरीके से अधिक दूध प्राप्त किए जाने के प्रयास में इन दुधारू पशुओं को रासायनिक इंजेक्शन दिया जाने लगा है, जिसका बुरा प्रभाव उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है। परिणामतः ये पशुधन जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। चूंकि अधिकांश भारतीय किसान एवं पशु मालिक अमीर नहीं हैं, इसलिए उनके रख- रखाव पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है, जिससे वे कमजोर हो जाते हैं ऐसी स्थिति में ये पशुधन अर्थव्यवस्था में योगदान देने की बजाय भारतीय अर्थ यानि मुद्रा या पूँजी का एक बड़ा हिस्सा खर्च करवा देते हैं। यही कारण है कि भारत में अत्यधिक पशुधन होने के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था में इनका योगदान नगण्य हो जाता है।

(ख) जल-संसाधन

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तरः

1. वृहत् क्षेत्र में जल की उपस्थिति के कारण पृथ्वी को क्या कहते हैं?

(क) उजला ग्रह (ख) नीला ग्रह (ग) हरा ग्रह (घ) लाल ग्रह

उत्तर-(ख)

2. कुल जल का कितना प्रतिशत भाग महागरों में निहित है?

(क)9.596 (ख)95.596 (ग)96.696 (घ)9696

उत्तर-(ग)

3. देश के बाँधों को किसने भारत का मंदिर कहा था?

(क) महात्मा गाँधी (ख) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद (ग) पंडित जवाहरलाल नेहरू (घ) स्वामी विवेकानंद

उत्तर-( ग)

4. प्राणियों के शरीर में कितना प्रतिशत जल की मात्रा होती है?

(क) 70% (ख) 55 96 (51) 60 % (घ) 65 %

उत्तर-(घ)

5. बिहार में अति जल – शोषण से किस तत्व का संकेन्द्रणा बढ़ने लगा है?

(क) आर्सेनिक (ख) फ्लोराइड (ग) क्लोराइड (घ) लोहा

उत्तर (क)

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर:

1.बहुउद्देशीय परियोजना से आप क्या समझते हैं?

उत्तर – जब किसी परियोजना के विकास का उद्देश्य बाढ नियंत्रण, सिंचाई, विदयत उत्पादन, परिवहन, मनोरंजन के साथ ही साथ कई अन्य उद्देश्य होते हैं तब उन परियोजनाओं को बहुउद्देशीय परियोजना कहा जाता है।

2. जल-संसाधन के क्या-क्या उपयोग हैं?

उत्तर – जल – संसाधन एक नवीकरणीय संसाधन हैं, जिसके विविध उपयोग हैं-

(I) पेयजल हेतु आवश्यक।

(II) घरेलू कार्यों में जरूरी।

(iii) सिंचाई में उपयोग ।

(iv) उद्योगों के लिए आवश्यक ।

(V) स्वच्छता हेतु ।

(vi) अग्निशमन हेतु एवं

(vii) मल – मूत्र विसर्जन हेतु आवश्यक है।

3. अंतरराज्यीय जल – विवाद के क्या कारण हैं?

उत्तर – एक से अधिक राज्यों से होकर बहनेवाली बड़ी नदियों पर जब स्रोत के निकट ऊपरी भाग में बाँध बना दिया जाता है तब शेष राज्यों की नदी घाटियों में जल का अभाव हो जाता है जिससे जल संकट उत्पन्न होता है । यही अंतरराज्यीय जल विवाद का मूल कारण है।

4.जल-संकट क्या है?

उत्तर – स्वीडिश वैज्ञानिक फाल्कन मार्क के अनुसार एक व्यक्ति को प्रतिदिन लगभग 1000 घन मीटर जल की आवश्यकता होती है । जब उसे इस मात्रा से कम जल मिलने लगता है तब इसे जल – संकट कहा जाता हैं।

5.भारत की नदियों के प्रदूषण के कारणों का वर्णन करें।

उत्तर – भारत की नदियों के प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं

(I) निकटवर्ती शहरों से नगरीय कूड़ा-करकट को नदी में गिराया जाना ।

(II) नगरीय मल – जल को बिना स्वच्छ किए नदी में गिराना ।

(iii) नदियों के किनारे बसे औद्योगिक कारखानों से निकलने वाले अपशिष्टों एवं रसायनों को नदी में बहाना ।

(iv) मृत जीवों को नदियों में फेंक देना ।

(v) कृधि में प्रयुक्त कीटनाशकों, रसायनों एवं उर्वरकों का जल के साथ बहकर नदी में मिल जाना।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न:

1. जल – संरक्षण क्या है? इसके लिए क्या – क्या उपाय किए जा सकते हैं?

उत्तर – वर्तमान समय में जल संकट दिन – प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है । उपलब्ध जल न केवल सीमित है बल्कि इसका अधिकांश हिस्सा प्रदूषित भी हे जो कई बीमारियों का कारण भी बनता जा रहा है । अत: जल की उपलव्यता को बनाए रखना, उसे प्रदूषित होने से बचाना तथा प्रदूषित जल को स्वच्छ कर पुन: उपयोग लायक बनाना एवं वर्षा जल को संग्रहित करना ही जल संरक्षण है । जल संरक्षण का उद्देश्य स्वस्थ जीवन, खाद्यान्न सुरक्षा और उत्पादक क्रियाओं को सुनिश्चित करना है भारत सरकार ने जल संकट निवारण हेतु 1987 ई. में राष्ट्रीय जल नीति तैयार की जिससे 2002 में संशोधित कर राष्ट्रीय जल नीति 2002 ‘ नाम दिया गया।

जल संरक्षण के लिए दो  मुख्य उपाय किए जा सकते हैं

(i) भूमिगत जल स्तर को बनाए रखना भूमिगत जल ही नलकूपों, कुओं, गाँवों, शहरों और खेतों में जल का स्रोत है। इसके स्तर को बनाए रखने तथा बढ़ाने के लिए वृक्षारोपण , वेटलैंड संरक्षण, वर्षा जल संचयन एवं खुली जगह या गैर – कंक्रीट जगह को छोड़ना आवश्यक है। संभर प्रबंधन किसी एक सहायक नदी की द्रोणी को जल संभर कहा जाता है । इसके प्रबंधन हेतु नदी द्रोणी क्षेत्र में उद्यान कृषि, जल कृषि, वृक्षारोपण कार्य किया जाना चाहिए।

(ii) तकनीकी उपाय – तकनीकी उपाय के अंतर्गत वैज्ञानिक आधुनिक उपायों को अमल में लाने की जरूरत है। ऐसे उपायों में ड्रिप सिंचाई, लिफ्ट सिंचाई , सूक्ष्म फुहार व्यवस्था, सीढ़ीनुमा खेती , प्रदूषित जल को पुन: उपयोग लायक बनाना एवं शहरी मल जल को वैज्ञानिक तरीकों द्वारा पुनः उपयोग लायक बनाना शामिल है।

2. वर्षा जल का मानव जीवन में क्या भूमिका है? इसके संग्रहण एवं पुन: चक्रण की विधियों का उल्लेख करें।

उत्तर – पृथ्वी पर उपलब्ध सागरीय जल लवणीय हैं जिसका सामान्य या दैनिक जीवन में उपयोग नहीं है तथा आंतरिक भागों में उपलब्ध जल का वितरण काफी असमान है । ऐसी स्थिति में वर्षा जल मानव जीवन के लिए काफी उपयोगी है। जो भूमिगत जलस्तर को बनाए रखने एवं नदी, तालाबों के जल स्तर को बनाए रखने एवं वर्षा आधारित कृषि के लिए अति आवश्यक है । वर्तमान एवं भविष्य में जल संकट की स्थिति से निबटने तथा वर्षा जल के बेकार वह जाने को कम करना तथा भूमिगत जल – स्तर को ऊँचा उठाना ही वर्षा जल संग्रहण का मुख्य उद्देश्य है। इसके संग्रहण एवं पुनः चक्रण की कई विधियाँ प्रचलित हैं जिसे प्राचीन एवं आधुनिक विधियों में वर्गीकृत किया जाता है। प्राचीन विधियों के अंतर्गत खदीन, जोहड़, गुल , कुल जैसी विधियाँ शामिल हैं जबकि आधुनिक समय में छत वर्षा जल संग्रहण की तकनीक काफी प्रचलित है । इसके अंतर्गत छत पर संग्रहीत वर्षा जल को एक पाइप के सहारे नीचे बने टैंक या संग्रह स्थान तक पहुंचा दिया जाता है। फिर उस पानी का उपयोग किया जाता है। बड़े-बड़े शहरों में उपयोग किए जा चुके पानी को एक बड़े ट्रीटमेंट प्लांट तक पहुँचाया जाता है । यहाँ यह गंदा पानी वैज्ञानिक विधि से साफ किया जाता है और पुनः उपयोग के लायक बना दिया जाता है इससे पानी का पुनःचक्रण हो जाता है।

(ग) वन एवं वन्य प्राणी संसाधन

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तरः

1. 2001 ई० में भारत के कितने प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र पर बन का विस्तार था?

(क)25(ख) 19.27 (ग)20 (घ)20.27

उत्तर-(ख)

2. वन स्थिति रिपोर्ट के अनुसार भारत में वन का विस्तार कितने प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र पर है?

(क) 20.609 (ख) 20.55 % (ग) 20 % (घ) 50.20%

उत्तर-(क)

3. बिहार में कितने प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र पर वन का विस्तार है?

(क) 15 96 (ख)289 (T) 2096 (घ) 4596

उत्तर-(ग)

4. पूर्वोत्तर राज्यों के 188 आदिवासी जिलों में देश के कुल क्षेत्र का कितना प्रतिशत वन है?

(क) 75 96 (ख) 80.05 % (ग) 90.03 % (घ) 50.11 9

उत्तर-(घ)

5. निम्नांकित किस राज्य में सबसे अधिक वन का विस्तार मिलता है?

(क) केरल (ख) कर्नाटक (ग) मध्य प्रदेश (घ) उत्तर प्रदेश

उत्तर (ग)

6. वन संरक्षण एवं प्रबंधन की दृष्टि से वनों को कितने वर्गों में बाँटा गया है?

(क)2(ख) 3 (ग)4 (घ)5

उत्तर-(ख)

7.1951-1980 की अवधि के दौरान लगभग कितना वर्ग किमी वन क्षेत्र कृषि भूमि में परिवर्तित हआ?

(क ) 3000 (ख) 25200 (T) 35500 (घ) 26200

उत्तर-(घ)

8. भारतीय संविधान की धारा 21 का संबंध किससे है?

(क) मृदा संरक्षण (ख) वन्य जीवों तथा प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण (ग) जल संसाधन संरक्षण (घ) खनिज संपदा संरक्षण

उत्तर-(ख)

9. एफ.ए.ओ. की वानिकी रिपोर्ट के अनुसार 1948 में विश्व के कितने हेक्टेयर भूमि पर वन का विस्तार था?

(क) 6 अरब हे (ख) 5 अरब है. (ग)4 अरब है. (घ) 8 अरब हे.

उत्तर-(ग)

10.प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित 1968 में कौन-सा कनवेंशन हुआ था?

(क) अफ्रीकी कनवेंशन(ख) वेटलेंडस कनर्देशन(ग) ब्राजील कनर्वेशन (घ) विश्व आपदा कनवेंशन

उत्तर -(क)

11. इनमें कौन जीव केवल भारत में पाया जाता है ?

(क) घड़ियाल (ख) कछुआ(ग) हल (घ) डालफिन

उत्तर-(क)

12. भारत का राष्ट्रीय पक्षी है?

(क) कबूतर (ख) हंस (ग) मयूर (घ) तोता

उत्तर-(ग)

13. मैंग्रूव्स का सबसे अधिक विस्तार कहाँ मिलता है?

(क) अंडमान-निकोबार (ख) सुंदरवन (ग) पूर्वोत्तर राज्य (घ) मालाबार तट

उत्तर-(ख)

14. टेक्सोल का उपयोग किस बीमारी में होता है?

( क ) मलेरिया (ख ) एड्स (ग) टी.बी. (घ) कैंसर

उत्तर-(घ)

15. चरक का संबंध किस देश से था?

(क) म्यांमार (ख) श्रीलंका (ग) भारत (घ) नेपाल

उत्तर- (ग)

 लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर:

1. वन विनाश के मुख्य कारकों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर – वन विनाश के मुख्य कारक हैं-

(i) कृषि भूमि का विस्तार ।

(ii) बड़ी विकास योजनाओं की शुरुआत |

(iii) पशुचारण एवं ईंधन के लिए लकड़ी का उपयोग ।

(iv) रेलमार्ग, सड़कमार्ग निर्माण ।

(v) औद्योगिक विकास एवं नगरीकरण।

2.बिहार के वर्तमान वन संपदा की स्थिति का वर्णन कीजिए।

उत्तर – बिहार विभाजन के बाद बिहार की वन संपदा में काफी कमी आ गई। वर्तमान समय में कुल भौगोलिक क्षेत्र के मात्र 7.1 96 भाग पर वन का फैलाव है। बिहार के 38 जिलों में से 17 जिलों से वन क्षेत्र बिल्कुल समाप्त हो चुका है। राज्य के औरंगाबाद, कैमर,रोहतास, गया, नालंदा, नवादा, जमुई, बांका, मुंगेर और पश्चिम चंपारण में वन पाए जाते हैं। यहाँ कुल मिलाकर 3700 वर्ग किमी क्षेत्र पर वन का विस्तार मिलता है।

3.वन के पर्यावरणीय महत्व को लिखें।

उत्तर – वन एक अमूल्य संसाधन है । सृष्टि के आरंभ से लेकर अंत तक मानव जीवन इसके द्वारा पोषित है। वन की उपस्थिति जीवमंडल में सभी जीवों को संतुलित स्थिति में जीने के लिए संतुलित परिस्थितिकी प्रदान करता है तथा सभी जीवों के लिए खाद्य ऊर्जा का प्रारंभिक सोत भी ये वन ही हैं।

4. वन्य जीवों के हास के चार प्रमुख कारणों को लिखें।

उत्तर – वन्य जीवों के हास के चार प्रमुख कारण हैं

(i) वन्य जीवों के प्राकृतिक आवासों का अतिक्रमण ।

(ii) प्रदूषण संबंधी समस्याएँ ।

(iii) आर्थिक लाभ हेतु शिकार ।

(iv) अवैध शिकार ।

5. वन्य जीवों के संरक्षण में सहयोगी या सामुदायिक रीति-रिवाज कैसे सहायक हैं? उल्लेख करें।

उत्तर -वन्य जीवों के संरक्षण में सामुदायिक रीति-रिवाज काफी सहायक हैं । गैर जनजातीय समाज में कई अवसरों पर पीपल, नीम, आम, बरगद एवं तुलसी की पूजा की जाती है। परिणामतः इनका स्वतः संरक्षण हो जाता है। इसी तरह कई पशुओं को भी पूजनीय माना गया है। जबकि जनजातीय समाजों में भी प्रकृति एवं पशुओं को पवित्र माना जाता है। उनकी वे पूजा करते हैं तथा उनके जीवन की रक्षा भी करते हैं । काले हिरण , चिंकारा , नीलगाय , बंदर , गाय, चूहा , कबूतर इत्यादि जैसे जीवों की रक्षा सामुदायिक रीति – रिवाजों के द्वारा होती है । वनों के संरक्षण के कारण उन पर आश्रित वन्य जीवों का भी स्वतः संरक्षण हो जाता है।

6. चिपको आंदोलन क्या है?

उत्तर – तत्कालीन उत्तर प्रदेश और वर्तमान के उत्तराखंड राज्य में स्थित टेहरी – गढ़वाल जिले में चिपको आंदोलन 1972 में शुरू किया गया। सुंदर लाल बहुगुणा के नेतृत्व में स्थानीय अनपढ़ जनजातियों द्वारा, ठेकेदारों द्वारा हरे-भरे वृक्षों को काटने के दोरान उसे बचाने के लिए ये लोग पेड़ों से चिपककर खड़ा हो जाते थे, ताकि पेड़ों को काटा नहीं जा सके । इसे पूरे भारत के साथ ही साथ विश्व स्तर पर स्वीकार किया गया।

7. कैंसर रोग के उपचार में वन कैसे सहायक है? लिखें।

उत्तर – हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश जैसे पर्वतीय राज्यों में स्थित उच्च क्षेत्रों में हिमालयन यव नाम का एक पोधा पाया जाता है। चीड़ के प्रकार का यह पौधा औषधीय गुण वाला है। इस पेड़ की छाल, पत्तियों, टहनियों और जड़ों से टैक्सॉल’ नामक रसायन प्राप्त किया जाता है जो कैंसर रोग के उपचार में सफल है। इस प्रकार केंसर रोग के उपचार में वन अपने उत्पाद के जरिए सहायक है।

8. विलुप्त होने के खतरे वाले दस जीव-जंतुओं के नाम लिखें।

उत्तर-विलुप्त होने के खतरे वाले दस जीव-जंतुओं के नाम इस प्रकार हैं

(i) लाल पांडा

(ii) सफेद सारस

(iii) पर्वतीय बटेर

(iv) सारंग

(v) नीलगाय

(vi) मगरमच्छ

(vii) गिद्ध

(viii) भेड़िया

(ix) मोर

(x) चीता

9.प्रदूषण जनित समस्या से वन्य जीवों का ह्रास हुआ है। कैसे?

उत्तर – प्रदूषण के बढ़ने के कारण कई प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हुई है जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव वन्य जीवों पर नकारात्मक रूप से पड़ा है । पराबैंगनी किरणों की अधिकता, अम्ल वर्षा एवं ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण वन्य जीवों की संख्या में कमी आई है। इसके अलावा वायु, जल तथा मृदा प्रदूषण के कारण वन एवं वन्य जीवन चक्र दुष्प्रभावित होता जा रहा है । जीवन चक्र को पूर्ण किए बिना नया जन्म संभव नहीं है । यही कारण है कि निवास स्थान उपलब्ध होने के बाद भी वन्य जीवों का वास होता जा रहा है। 10. भारत के दो प्रमुख जेवमंडल क्षेत्र का नाम प्रांतों सहित लिखें। उत्तर- भारत के दो प्रमुख जैवमंडल क्षेत्र हैं-(1) पंचमढ़ी क्षेत्रफल 492628 वर्ग किमी०, प्रांत – मध्य प्रदेश I(ii) डिबू साइकोबा क्षेत्रफल, 765 वर्ग किमी०, प्रांत – असम ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तरः

1.वन एवं वन्य जीवों के महत्त्व का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।

उत्तर – वन एक नवीकरणीय संसाधन है, जिससे मानव का संबंध काफी पुराना है । मानवीय सभ्यता और संस्कृति का विकास वनों से ही हुआ है और आज भी हमारा संबंध इन वनों और वन्य जीवों से काफी गहरा है। वन पृथ्वी के लिए सुरक्षा कवच हे। यह पृथ्वी का फेफड़ा कहलाता है। कहा जाता है कि जब तक वन एवं वन्य जीव साँस लेता रहेगा तबतक मानव भी साँस लेता रहेगा । संसाधन के साथ ही साथ यह पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण का एक महत्वपूर्ण घटक हे । सभी जीवों के लिए खाद्य ऊर्जा का प्रारंभिक स्रोत यह वन ही है। पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार संतुलित पर्यावरण के लिए किसी क्षेत्र के लगभग 3396 क्षेत्र पर वन का विस्तार होना आवश्यक है। वन का विकास कई भौगोलिक कारकों पर निर्भर करता है । फलतः इसके वितरण में काफी भिन्नताएँ पाई जाती हैं। वन वृक्षों की विविधता के कारण इससे पशुओं के लिए चारा , उलाने के लिए ईधन, काष्ठ , लकड़ियाँ तथा कई उद्योगों के लिए कच्चे माल तथा लुग्दी, इमारती लकड़ियाँ प्लाईवुड, फाइबर बोर्ड, सेलुलोज , रबड़, कार्क, तेल , विभिन्न प्रकार के फल एवं मसाले , औषधियाँ तथा टैनिन इत्यादि प्राप्त किए जाते हैं। हिमालयन यव से प्राप्त टैक्सोल रसायन कैंसर रोग के उपचार में प्रयुक्त होता है । इसी तरह कई अन्य जड़ी-बूटियाँ हमें वनों से मिलती हैं। जबकि वन्य जीवों में मांसाहारी,शाकाहारी, उभयचर एवं सरीसृप वर्ग के जीव पाए जाते हैं जो जैव – विविधता की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं । इनके कई प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष उपयोग हैं।

2.वृक्षों के घनत्व के आधार पर वनों का विस्तार से वर्णन कीजिए।

उत्तर – वनों का वितरण कई भौगोलिक कारकों पर निर्भर करता है जिसमें स्थानीय जलवायु एवं उच्चावच प्रमुख हैं। इसी के आधार पर विश्व के वनों का वर्गीकरण किया जाता है। परंतु इन वनों का वितरण काफी असमान है। भारत में भी यही स्थिति है जहाँ मध्य प्रदेश एवं पूर्वोत्तर राज्यों में सघन वन पाए जाते हैं वहीं राजस्थान, हरियाणा , बिहार, पंजाब जैसे राज्यों में बनों का घनत्व काफी कम है वृक्षों के इसी घनत्व भिन्नता के आधार पर भारतीय वनों को पाँच वर्गों में रखा गया है

(i) अत्यंत सघन वन – इस प्रकार के वनों में वृक्षों का घनत्व 70% से अधिक है । भारत में इस प्रकार के वन का विस्तार (296) 54.6 लाख हेक्टेयर भूमि पर है। असम और सिक्किम को छोड़कर पूरे पूर्वोत्तर राज्यों में ऐसे वन हैं।

(ii) सघन वन – इस प्रकार के वन के अंतर्गत लगभग 74 लाख हेक्टेयर भूमि है जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 39 है । यहाँ वनों का घनत्व 63 96 है । ऐसे वन हिमाचल प्रदेश, सिक्किम , मध्य प्रदेश, जम्मू – कश्मीर, महाराष्ट्र एवं उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में है।

(iii) खुले वन – लगभग 3 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर इन वनों का विस्तार है जो कुल भौगोलिक क्षेत्र के 7 % पर विस्तृत है इसके अंतर्गत कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा और असम के 16 आदिवासी जिले शामिल हैं । यहाँ वृक्षों का घनत्व 10-40 96 तक है।

(iv) झाड़ियाँ एवं अन्य – इसके अंतर्गत पंजाब, हरियाणा, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल एवं राजस्थान __ के इलाके शामिल हैं। ऐसे वन का विस्तार कुल भौगोलिक क्षेत्र के 996 क्षेत्र पर है । यहाँ वृक्षों का घनत्व 1096 से भी कम है।

(v) मैंग्रोव वन मुख्यतः देश के पूर्वी तटीय राज्यों में ऐसे वन मिलते हैं इसमें पश्चिम बंगाल , गुजरात , अंडमान __-निकोबार द्वीप समूह, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र उड़ीसा, तमिलनाडु, पांडिचेरी, केरल एवं दमन -दीव शामिल हैं।

3. जैव-विविधता से आप क्या समझते हैं? इसके महत्व का वर्णन करें।

उत्तर – संपूर्ण पृथ्वी अथवा उसके किसी एक हिस्से पर पाए जानेवाले जीवों की विविधता को जैव – विविधता कहा जाता है। इसमें सूक्ष्म जीवाणु से लेकर ब्लू देल जैसे बड़े जीव शामिल हैं। दूसरे शब्दों में ” पृथ्वी जैव विविधता का भंडार गृह है ।” स्थानीय स्तर पर किसी क्षेत्र अथवा जैविक उद्यान में स्वतः अथवा मानवीय प्रयास से इकट्ठा किए गए जीवों को जैव-विविधता का ही अंश माना जाता है। इस आधार पर भारत जैसे विशाल भौगोलिक क्षेत्र वाले देश एवं विभिन्नताओं से भरा यह देश जैव – विविधता के संदर्भ में भी अनूठा है। यही कारण है कि इसकी गिनती विश्व के 12 विशाल जैविक विविधता वाले देशों में की जती है। यहाँ विश्व की सभी जैव उपजातियाँ की 8% संख्या पाई जाती है। किसी भी देश के स्वस्थ जैव मंडल एवं जैविक उद्योग के लिए जैव – विविधता का समृद्ध होना अनिवार्य है। जिसके कई प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लाभ हैं । इन जैव विविधताओं से हमें भोजन, औषधियाँ, दवाईयाँ, रेशा, रबड और लकडियाँ मिलती हैं जिनका मानव जीवन में विविध उपयोग है। आज कई सूक्ष्म जीवों का उपयोग बहमूल्य उत्पाद तैयार करने में होने लगा है। इनके अतिरिक्त जैव – विविधता की कई उपयोगिताएँ हैं-

(i) नवीन फसलों के साधन के रूप में ।

(ii) उन्नत किस्म के कृषि/ फसल नस्ल तैयार करने में ।

(iii) नए जैव विकास के रूप में। जैव विविधता के कारण ही जैव तकनीक का विकास हआ है जिससे नए गण और उन्नत नस्ल वाले पेड़-पौधे एवं जीव विकसित किए जा चुके हैं । पारदर्शी शरीर वाले मेढ़क का विकास इसकी नवीनतम कड़ी है।

4. मानवीय क्रियाओं द्वारा वन एवं वन्य जीवों का हास हुआ है । कैसे? विस्तृत वर्णन करें।

उत्तर – वन संपदा मानव जीवन के लिए अनिवार्य है। फिर भी मानव ने विकास के नाम पर तथा अधिक पाने की लालसा में वनों का दोहन करना आरंभ किया। मानव के अतिरिक्त अन्य सभी जीव – जंतु वन से अपनी आवश्यकता के अनुसार ही चीजें प्राप्त करता है, परंतु मानवीय गुण के कारण इसने वनों से अधिक पाने की लालसा में वनों का अधिक दोहन कर वन एवं वन जीवों का हास किया है। उपनिवेश काल में अंग्रेजों द्वारा रेलमार्गों एवं सड़कों के विकास के लिए वनों को काटा गया । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद विकास के नाम पर वनों का विनाश आरंभ हुआ। बढ़ती जनसंख्या के कारण वनों को काटकर न केवल कृषि भूमि का विस्तार किया गया बल्कि अधिवासीय क्षेत्रों का भी विकास किया गया है। एक सर्वेक्षण के अनुसार 1951-81 के मध्य लगभग 26000 वर्ग किमी . वन क्षेत्र कृषि भूमि में परिवर्तित किया गया। आर्थिक विकास के नाम पर बड़ी विकास योजनाएँ आरंभ की गई । बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं के विकास के कारण 1952 ई. में 50000 वर्ग किमी. से अधिक वन क्षेत्रों को नष्ट किया गया । वर्तमान समय में भी इस प्रक्रिया से वन विनाश जारी है। खनन कार्य के कारण भी संबंधित क्षेत्र पर के वनों का विनाश होता रहा है। बड़े-बड़े कारखानों, उद्योगों की स्थापना के कारण भी वनों का विनाश बड़े पैमाने पर हुआ है। साथ ही वन आधारित उद्योगों के विकास का भी प्रतिकूल असर इन वनीय संपदाओं पर पड़ा है । पशुचारण कार्य तथा ईधन के लिए लकड़ियों के उपयोग के कारण भी पर्वतीय क्षेत्रों के वन कटे हैं। सड़क मार्ग, रेलमार्ग, नगरीकरण, औद्योगीकरण के कार भी वन एवं वन्य जीवों का लगातार विनाश होता जा रहा है। वनों के विनाश से पर्यावरण एवं अधिवासीय क्षेत्र के विनाश के कारण वन्य जीवों का भी साथ-साथ विनाश अथवा हास हो रहा है। फलत: 744 वन्य जीव लुप्त हो चुके हैं एवं 22500 विलुप्ती के कगार पर हैं। भारत में चीता और गिद्ध इसके उदाहरण हैं। बाघों की संख्या भी लगातार घटती जा रही है।

5.भारत में विकसित जैव मंडल क्षेत्र का विस्तृत विवरण दें।

उत्तर – भारत जैव विविधताओं से समृद्ध देश है । जहाँ पश्चिमी घाटी एवं उत्तर – पूर्वी राज्य इस दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। यहाँ भारत के कुल क्षेत्रफल का क्रमश: 496 एवं 5.2 96 भाग है, जिसे विश्व के 25 हॉट स्पॉट में शामिल किया गया है । जहाँ असंख्य जैविक समूह निवास करते हैं। एक अध्ययन के अनुसार देश में उपलब्ध 33% पुष्पीय पौधे, 53 96 स्वच्छ जल मछली , 60 96 एम्फीबियन, 3096 सरीसृप एवं 1096 स्तनपाई प्रजातियाँ भारतीय मूल की हैं। इस विविधता भरी विशेषताओं को सुरक्षित रखने एवं इनके संवर्द्धन के उद्देश्य से यूनेस्को की सहायता से देश में 14 जैव मंडल आरक्षित क्षेत्रों का विकास किया गया है। देश का सबसे बड़ा जैव – मंडल आरक्षित क्षेत्र पंचमढ़ी है जो मध्य प्रदेश के बेतूल , होशंगाबाद और छिंदवाड़ा जिलों के लगभग 5 लाख वर्ग किमी ० क्षेत्र पर फैला है । इसके बाद दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र अचनकमार – अमरकंटक जैव मंडल क्षेत्र है। लगभग 383000 वर्ग किमी ० क्षेत्र पर मध्य प्रदेश के अनुपुर , दिन दौरी और छत्तीसगढ़ के विलासपुर जिले में फैला है। कंचनजंगा जैवमंडल क्षेत्र सिक्किम के 2.6 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र पर फैला है। सबसे प्रसिद्ध नीलगिरी जैव मंडल क्षेत्र तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक राज्यों की सीमाओं पर  5520 किमी क्षेत्र पर विस्तृत है। उत्तराखंड राज्य के लगभग 2200 वर्ग किमी क्षेत्र पर नंदा देवी जैव मंडल क्षेत्र का फैलाव है। नोकरेक जेव मंडल क्षेत्र मेघालय राज्य के 820 वर्ग किमी क्षेत्र पर फैला है। जबकि मानस क्षेत्र का विकास असम राज्य के 2837 वर्ग किमी क्षेत्र पर है। सुंदरवन जैव मंडल क्षेत्र पक्षिम बंगाल, मन्नार की खाड़ी, तमिलनाडु तट पर ग्रेट निकोबार क्षेत्र अंडमान निकोबार द्वीप समूह, सिमलीपाल – रिजर्व क्षेत्र । उड़ीसा, डिबू- साइकोवा असम, दिहांग-दिबंग अरुणाचल प्रदेश एवं अगस्थ्यमलाई जैव मंडल रिजर्व क्षेत्र केरल राज्य में विस्तृत है।

(घ) खनिज संसाधन

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तरः

1.भारत में लगभग कितने खनिज पाए जाते हैं?

(क) 50 (ख) 100 (1) 150 ( घ) 200

उत्तर-(क)

2. इनमें से कौन लोहयुक्त खनिज नहीं है?

(क) मैंगनीज (ख) अभ्रक (ग) बॉक्साइट (घ) चूना पत्थर

उत्तर-(क)

3. निम्नलिखित में कौन अघात्विक खनिज है?

(क) सोना (ख) टीन (ग) अभ्रक

उत्तर-(ग)

4. किस खनिज को उद्योगों की जननी कहा गया है?

(क) ताँबा ( ख ) मैंगनीज (ग) सोना (घ) लोहा

उत्तर-(घ)

5. इनमें कौन लौह अयस्क का एक प्रकार है?

(क) लिग्नाइट (ख) हेमाटाइट (ग) बिटुमिनस (घ) फ्लोगोपाइट

उत्तर-(ख)

6. निम्नांकित कौन भारत का सबसे बड़ा लौह उत्पादक राज्य है?

(क) कर्नाटक ( ख ) गोवा (ग) झारखंड (घ) बिहार

उत्तर-(क)

7. छत्तीसगढ़ भारत का कितना प्रतिशत लौह अयस्क उत्पादित करता है?

(क) 10 ( ख ) 20 (ग) 30 (घ) 50

उत्तर-(ख)

8. मैंगनीज उत्पादन में भारत का विश्व में क्या स्थान है?

(क) पहला (ख) दूसरा (ग) तीसरा (घ) पाचवाँ

उत्तर-(घ)

9. एक टन इस्पात बनाने में कितना मैंगनीज उपयोग होता है?

(क)5 किग्रा . (ख ) 10 किग्रा (ग) 15 किग्रा. (घ) 20 कि.ग्रा.

उत्तर-(ख)

10. उड़ीसा किस खनिज का सबसे बड़ा उत्पादक है?

(क) लौह अयस्क (ख) मैंगनीज (ग) टीन (घ) ताँबा

उत्तर-(ख)

11. एल्युमीनियम बनाने के लिए किस खनिज की आवश्यकता पड़ती है?

(क ) मैंगनीज (ख) टीन (ग) लोहा (घ) बॉक्साइट

उत्तर-(घ)

12.देश में ताँवा का कुल भंडार कितना है?

(क) 125 लाख टन (ख) 125 करोड़ टन (ग) 150 करोड़ टन (घ) 175 करोड़ टन

उत्तर-(ख)

13. बिहार – झारखंड राज्य मिलकर देश का कितना प्रतिशत अभ्रक का उत्पादन करते हैं?

(क) 90(ख) 60(ग)70.(घ) 89

उत्तर-(घ)

14. सीमेंट उद्योग का सबसे प्रमुख कच्चा माल क्या है?

(क) चूना पत्थर (ख) लोहा(ग) ग्रेफाइट (घ) बॉक्साइड

उत्तर-(क)

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर:

1.खनिज किसे कहा जाता है।

उत्तर – खनिज प्राकृतिक रूप से मिलने वाला अकार्बनिक पदार्थ है , जिसको रासायनिक एवं भौतिक संरचना एवं आंतरिक परमाण्विक संगठन निश्चित होता है।

2.धात्विक खनिजों के दो प्रमुख पहचान को लिखें।

उत्तर – धात्विक खनिजों के दो प्रमुख पहचान हैं

(i) गलाने पर इनसे धातु प्राप्त होता है।

(ii) ये कठोर एवं चमकीले होते हैं जिसे पीटकर तार बनाया जाता है।

3.खनिजों की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर-खनिजों की प्रमुख विशेषताएँ हैं

(i) ये प्राकृतिक रूप में पाए जाते हैं।

(ii) इनका भौतिक एवं रासायनिक संयोजन निश्चित होता है।

(iii) इनका विशिष्ट आंतरिक परमाण्विक संरचना होती है।

4. लौह अयस्क के दो प्रकारों के नाम लिखें।

उत्तर – लौह अयस्क के दो प्रकार हैं

(i) मैग्नेटाइट,

(ii) हेमाटाइट।

5. लोहे के प्रमुख उत्पादक राज्यों के नाम लिखें।

उत्तर – लोहे के प्रमुख उत्पादक राज्यों में कर्नाटक, छत्तीसगढ़, उड़ीसा , गोवा, झारखंड एवं महाराष्ट हैं।

6.झारखंड के प्रमुख लौह उत्पादक जिलों के नाम लिखिए।

उत्तर – झारखंड के प्रमुख लौह उत्पादक जिले सिंहभूम , पलामू, धनबाद , हजारीबाग , संथाल परगना एवं राँची हैं।

7. मैंगनीज के क्या उपयोग हैं? लिखें।

उत्तर – मैंगनीज का उपयोग शुष्क बैटरियों के निर्माण में, फोटोग्राफी में , चमड़ा एवं माचिस उद्योग में कीटनाशक दवाओं के निर्माण में तथा पेंट उद्योग में होता है।

8. एल्युमीनियम के उपयोग पर प्रकाश डालें।

उत्तर – वायुयान निर्माण, विद्युत उपकरण निर्माण, घरेलू साज-सज्जा के सामानों का निर्माण, बरतन बनाने, सफेद सीमेंट तथा रासायनिक वस्तुएँ इत्यादि बनाने में एल्युमीनियम का उपयोग किया जाता है.

9.अभ्रक के क्या उपयोग हैं? लिखें।

उत्तर – अभ्रक विद्युतरोधक गुणवाला होने के कारण इसका उपयोग इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग, इलेक्ट्रीकल उद्योग, खिलोना उद्योग एवं आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माण में किया जाता है।

10. चूना पत्थर के उपयोग को लिखें।

`उत्तर – चूना पत्थर का उपयोग मुख्य रूप से सीमेंट उद्योग, लौह – इस्पात उद्योग एवं रसायन उद्योग में किया जाता है।

11.खनिजों के संरक्षण एवं प्रबंधन से आप क्या समझते हैं?

उत्तर – खनिज राष्ट्रीय संपत्ति है, जो एक बार उपयोग में आने के बाद लगभग समाप्त हो जाते हैं। इन्हें दोबारा उपयोग में नहीं लाया जा सकता है। देश का आर्थिक विकास का प्रत्यक्ष संबंध इन खनिजों से है तथा इनके भंडार सीमित एवं क्षयशील प्रकृति के कारण खनिजों का संरक्षण जरूरी है। इसके लिए इनका विवेकपूर्ण – उपयोग होना चाहिए । खनिजों के विकल्पों की खोज, उनके अपशिष्ट पदार्थों का बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग, पारिस्थितिकीय कुप्रभाव पर नियंत्रण तथा खनिज निर्माण के चक्रिय पद्धति को अपनाना खनिज प्रबंधन कहलाता है। खनिजों के संरक्षण के साथ-साथ प्रबंधन से खनिज संकट पर काबू पाया जाना संभव है

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर:

1. खनिज कितने प्रकार के होते हैं? सोदाहरण विवरण दें।

उत्तर – खनिज प्राकृतिक रूप में पाया जानेवाला वह पदार्थ है, जिसकी भौतिक एवं रासायनिक संरचनाएँ निश्चित होती है तथा आंतरिक परमाण्विक संगठन भी विशिष्ट होता है । खनिज टॉल्क जैसी मुलायम एवं हीरे जैसी कठोर भी होती है। विशिष्ट प्रकार के खनिजों के संयोजन से ही चट्टानों का निर्माण होता है।

मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं

(क) घात्विक खनिज ऐसे खनिजों में धातु का अंश होता है। इन्हें पुनः दो उपभागों में बाँटा गया है

(i) लोहयुक्त खनिज -ऐसे धात्विक खनिजों में लोहा का अंश अधिक पाया जाता है । जैसे लौह अयस्क, मैंगनीज, निकेल, टंगस्टन इत्यादि।

(ii) अलौह खनिज – ऐसे धात्विक खनिजों में लोहे का अंश नहीं के बराबर होता है । जैसे सोना , चाँदी, ताँबा , टीन , शीशा इत्यादि।

(ख) अधात्विक खनिज इस प्रकार के खनिजों में धातु नहीं मिलते हैं। इनके भी दो उपवर्ग बनाए गए हैं

(i) कार्बनिक खनिज – ऐसे अधात्विक खनिजों में जीवाश्म या कार्बन के अंश होते हैं । जैसे कोयला , पेट्रोलियम आदि।

(ii) अकार्बनिक खनिज ऐसे अधात्विक खनिजों में कार्बन या जीवाश्म नहीं होते हैं। जैसे अभ्रक, ग्रेफाइट आदि । इन खनिजों में लौह खनिजे रवेदार चट्टानों में पाए जाते हैं जबकि अलौह खनिजें सभी प्रकार के चट्टानों में मिलने संभव हैं। इसी तरह घात्विक खनिजें आग्नेय चट्टानों में मिलते हैं। जबकि अधात्विक खनिजें अवसादीय चट्टानों में पाये जाते हैं।

2.धात्विक एवं अघात्विक खनिजों में क्या अंतर है? तुलना कीजिए।

उत्तर – खनिजों का मानवीय जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है । ये खनिज किसी भी देश की राष्ट्रीय संपत्ति है , जिस पर देश का आर्थिक विकास निर्भर करता है। खनिजों पर ही देश के औद्योगिक विकास की दशा एवं दिशा । निर्भर करती है। दूसरे शब्दों में “खनिज संसाधन आधुनिक सभ्यता एवं संस्कृति के आधार स्तम्भ माने जाते हैं ये खनिज निश्चित भौतिक एवं रासायनिक विशिष्टताओं से निर्मित प्राकृतिक पदार्थ हैं जिनका आंतरिक । परमाण्विक संगठन भी निश्चित होता है तथा ये ठोस अवस्था में पाए जाते हैं। लगभग 2000 से अधिक प्रकार के खनिजों को पहचाना जा चुका है, परंतु सभी खनिज एक ही प्रकार के नहीं होते हैं।

इन्हें प्रमुख रूप से दो वर्गों में बाँटा जाता है ।

(क) धात्विक खनिज वैसे खनिजों को इस वर्ग में रखा जाता है जिनमें धातु होता है जैसे लोहा , तांबा , मैंगनीज , सोना इत्यादि इन्हें पुनः दो उपवर्गों में रखा जाता है।

(i) लोहयुक्त खनिज-जिन धात्विक खनिजों में लोहे का अंश अधिक पाया जाता है, उन्हें लौह युक्त खनिज कहा जाता है। जैसे लौह अयस्क , मैंगनीज , टंग्स्टन इत्यादि ।

(ii) अलोहयुक्त खनिज-जिन धात्विक खनिजों में लोहे का अंश काफी कम होता है, इस वर्ग में शामिल हैं। जैसे – सोना , चाँदी, टीन , ताँबा इत्यादि।

(ख) अधात्विक खनिज – इस प्रकार के खनिजों में धातु नहीं पाए जाते हैं। जैसे चूना पत्थर , अभ्रक आदि। अधात्विक खनिज भी दो प्रकार के होते हैं

(i) कार्बनिक खनिज इन खनिजों में जीवाश्म होते हैं । जैसेकोयला, पेट्रोलियम आदि।

(ii) अकार्बनिक खनिज इनमें जीवाश्म नहीं होता है। जैसे- अभ्रक , ग्रेफाइट आदि । धात्विक खनिजें कठोर एवं चमकीले होते हैं जबकि अधात्विक खनिजों की चमक अलग होती है। धात्विक खनिजें प्रायः आग्नेय चट्टानों में मिलते हैं जबकि अधात्विक खनिजें परतदार चट्टानों में प्रायः मिलती हैं। धात्विक खनिजों को पीटकर तार बनाया जा सकता है जबकि अधात्विक खनिजें पीटने पर चूर – चूर हो जाते हैं।

3. भारत के विभिन्न खनिज पेटियों का नाम लिखकर उनका विस्तृत विवरण दीजिए।

उत्तर – भारत के भूगर्भिक संरचनाओं में विभिन्नता के कारण खनिजों का वितरण काफी असमान है । यहाँ के अधिकतर खनिज प्राचीन समूहों में मिलते हैं। आर्कियन और धारवाड़ समूह के चट्टानों में लौह अयस्क एवं मैगनीज मिलते हैं तो अरावली श्रेणी में जस्ता, ताँबा एवं शीशा पाया जाता है। कड़प्पा और विध्यन समूहों में जहाँ चना पत्थर, जिप्सम एवं डोलोमाइट तथा हीरा पाया जाता है वहीं गोंडवाना चट्टानों में कोयला प्रमुखता से पाया जाता है जबकि टर्शियरी कालीन चट्टानों में लिग्नाइट एवं पेटोलियम मिलते हैं। देश का अधिकांश खनिजों का वितरण काफी असमान है।

फिर भी इन्हें तीन प्रमुख पेटियों में बाँटा जाता है –

(i) पूर्वी पठारी क्षेत्र – इसके अंतर्गत झारखंड, असम, मेघालय, उड़ीसा , छत्तीसगढ़ एवं पूर्वी मध्य प्रदेश का क्षेत्र शामिल है। यहाँ कोयला , लौह अयस्क, मैंगनीज, पेट्रोलियम , यूरेनियम, अभक, चूनापत्थर , बॉक्साइट , थोरियम, ताँबा इत्यादि खनिज पाए जाते हैं।

(ii) पश्चिमी एवं पश्चिमोत्तर क्षेत्र इस क्षेत्र के अंतर्गत राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिमी मध्य प्रदेश एवं जम्मू – कश्मीर राज्य शामिल हैं जहाँ कोयला, बॉक्साइट, मैंगनीज, पेट्रोलियम, अबरक, लौह अयस्क, ताँबा प्रमुखता से पाये जाते हैं।

(iii) दक्षिणी पठारी क्षेत्र – इस क्षेत्र के अंतर्गत आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, केरल एवं तमिलनाड राज्य आते हैं जहाँ बॉक्साइट, थोरियम, लिग्नाइट, कोयला, लौह अयस्क, मैगनीज, ताँबा, अभ्रक , सोना जैसे खनिजों के भंडार पाए जाते हैं।

4. लौह – अयस्क का वर्गीकरण कर उनकी विशेषताओं को लिखिए।

उत्तर – लौह – अयस्क में उपलब्ध लौहांश की मात्रा को ध्यान में रखकर लौह – अयस्क को तीन भागों में वर्गीकृतकर अध्ययन किया जा सकता है।

(a) हेमेटाइट- इस लोह – अयस्क में लोहांश सर्वाधिक 68 प्रतिशत पाया जाता है। इससे लकीर खींचने पर लाल उगता है, जिस कारण इसे लाल अयस्क भी कहा जाता है। भारत में इसके लगभग 12317 मिलिन टन भंडार उपलब्ध हैं।

(b) मैग्नेटाइट – इसमें लौहाश की मात्रा 60 प्रतिशत होती है। घिसने पर काला रंग दिखता है । अत: इसे काला अयस्क के नाम से जाना जाता है। भारत में इसके 540 मिलियन टन भंडार उपलब्ध हैं।

(c) लिमोनाइट – यह सबसे घटिया किस्म का लौह – अयस्क है, जिसमें लौहांश की मात्रा 40 प्रतिशत से भी कम होता है। पीला अयस्क के नाम से जाना जाता है। भण्डार का आकलन अभी परीक्षणाधीन है।

5.भारत में लौह – अयस्क के वितरण एवं उत्पादन का वर्णन करें।

उत्तर – लोहा औद्योगीकरण की रीढ़ है। जिस पर देश का आर्थिक विकास निर्भर करता है । भारत में लौह – अयस्क का कुल भंडार का 84 96 हेमाटाइट प्रकार है। इसके अतिरिक्त मैग्नेटाइट एवं लिमोनाइट के भंडार भी यहाँ हैं । देश में इसके अयस्क का वितरण प्राय: सभी राज्यों में है । जिनमें प्रमुख हैं

(i) कर्नाटक यहाँ देश का एक चौथाई लोहा उत्पन्न होता है । उसका उत्पादन बेल्लारी , कुद्रेमुख , बाबाबूदन एवं केमनगुडी की खानों से होता है।

(ii) छत्तीसगढ़ – कर्नाटक के बाद यह देश का दूसरा प्रमुख लौह अयस्क उत्पादक राज्य है । यहाँ से लगभग 2096 लोहा प्राप्त होता है जिसका खनन बेलाडिला, डाली, राजहरा इत्यादि से होता है। यहाँ से उत्पादित लोहे का निर्यात विशाखापतनम बंदरगाह से किया जाता है।

(iii) उड़ीसा – यहाँ से 19% लोहा प्राप्त होता है जो गुरु महिषानी एवं बादाम पहाड़ तथा किरीबुरू से निकाला जाता है।

(iv) गोवा देश का 16 96 लौह उत्पादन वाला यह राज्य देश का चौथा स्थान रखता है । जहाँ साहपचालिम, संग्यूम , सतारी, पोंडा एवं वियोलिम इत्यादि खानों से लौह अयस्क निकाला जाता है।

(v) झारखंड – यह सिंहभूम , पलामू, धनबाद , हजारीबाग , राँची एवं संथाल परगना क्षेत्र से देश के कुल लौह अयस्क उत्पादन का 15 96 हिस्सा उत्पादित होता है।

इन प्रमुख उत्पादक राज्यों के अतिरिक्त महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश एवं तमिलनाडु राज्यों से भी लौह __ अयस्क निकाला जाता है। 1950-51 में देश में लौह अयस्क का कुल उत्पादन 42 लाख टन से बढ़कर 2004-05 ई० के 1427 लाख टन हो गया

6.मैंगनीज अथवा वॉक्साइट की उपयोगिता तथा देश में इनके वितरण का वर्णन कीजिए।

उत्तर – मैंगनीज की उपयोगिता एवं वितरण मैंगनीज का उपयोग इस्पात सहित विभिन्न मिश्रधातु बनाने में किया जाता है। इससे निर्मित इस्पात जंगरोधी होते हैं । इसके अतिरिक्त शुष्क शेल बनाने में , फोटोग्राफी में, चमड़ा एवंमाचिस उद्योग में, रग-रोगन आदि कार्यों में भी मैंगनीज का उपयोग होता है। भारत में विश्व का 20 प्रतिशत मैंगनीज (1670 लाख टन) संचित है । उत्पादन में रूस एवं द. अफ्रीका के बाद यह विश्व का तीसरा सबसे बड़ा देश है । यहाँ मैंगनीज के भंडार उड़ीसा , मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश राज्य में फैले हैं। अकेले उड़ीसा देश का 37 प्रतिशत मैंगनीज उत्पादन करता है। बॉक्साइट की उपयोगिता एवं वितरण बॉक्साइट एक अलौह धातु निक्षेप है । भारत के पास इसके पर्याप्त संचित भण्डार हैं। इससे अल्युमीनियम प्राप्त किया जाता है । जिसका बहुमुखी उपयोग आधुनिक युग में हो रहा है। इसका उपयोग वायुयान निर्माण , विद्युत उपकरण निर्माण, घरेलू साज – सज्जा सामग्रियों का निर्माण , वर्तन निर्माण, सफेद सिमेन्ट निर्माण एवं रसायनों के निर्माण में किया जाता है। भारत में लगभग 3037 मिलियन टन बॉक्साइट के अनुमानित भंडार उपलब्ध हैं। इसका भंडार मुख्य रूप से उड़ीसा, गुरात, झारखंड, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तमिलनाडु एवं उत्तर प्रदेश में अवस्थित हैं। देश का 42 प्रतिशत बॉक्साइट का उत्पादन अकेले उड़ीसा राज्य करता है। इसके प्रमुख उत्पादन क्षेत्र कालाहांडी, बालंगीर, कोरापुट , सुन्दरगढ़ तथा संभलपुर है। गुजरात में 17.35 प्रतिशत बॉक्साइट उत्पादन होता है । इसके साथ ही गुजरात देश का दूसरा बड़ा उत्पादक राज्य है । जामनगर , कैगा, सबरकंठ, कच्छ तथा सूरत प्रमुख उत्पादक क्षेत्र है । झारखंड को देश में तीसरा स्थान प्राप्त है। यहाँ देश का 14 प्रतिशत बॉक्साइट का उत्पादन रॉची, लातेहार, पलामू, लोहरदग्गा जिलों से होता है । इसके अतिरिक्त भी कई राज्यों में अनेक बॉक्साइट उत्पादक क्षेत्र हैं । जहाँ न्यून मात्रा में बॉक्साइट का उत्खनन होता है।

 7. अभ्रक की उपयोगिता एवं वितरण पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – अभ्रक की उपयोगिता – अभ्रक एक विद्युतरोधी अधात्विक खनिज है । विद्युतरोधी होने को कारण इस खनिज का सर्वाधिक उपयोग विद्युत उपकरण के निर्माण में किया जाता है । इसके तिरिक्त इसका उपयोग साज – सज्जा सामग्रियाँ , रंग-रोगन की वस्तुओं के निर्माण में भी होता है । अभ्रक का वितरण – अभक के उत्पादन में भारत विश्व का सिरमौर है। भारत में अभ्रक की तीन पेटियाँ हैं , जो बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश तथा राजस्थान राज्यों में विस्तृत हैं । भारत में अभ्रक के कुल भंडार 59065 टन है । बिहार एवं झारखंड में उत्तम कोटि के अभ्रक रूबी अभ्रक का उत्पादन होता है। बिहार में गया, मुंगेर एवं भागलपुर जिलान्तर्गत इसके उत्पादन होते हैं । वहीं झारखंड में हजारीबाग, धनबाद , पलामू, राँची एवं सिंहभूम जिलों में अभ्रक की खानें है। बिहार एवं झारखंड भारत के 80 प्रतिशत अभ्रक का उत्पादन करते हैं। आंध्र प्रदेश के नेल्लूर जिला , राजस्थान अंतर्गत उदयपुर, जयपुर, भीलवाड़ा, अजमेर आदि जिलों में अभ्रक के उत्खनन होते हैं।

8. खनिजों के संरक्षण के उपाय सुझाइए।

उत्तर – खनिज क्षयशील एवं अनवीकरणीय संसाधन हैं । इनके भंडार सीमित हैं और पुनर्निर्माण भी असंभव है । क्योंकि इनका निर्माण एक जटिल एवं लंबी प्रक्रिया से होता है । खनिज आधुनिक औद्योगिक जगत् के आधार हैं। औद्योगिक विकास के क्रम में खनिजों का अतिशय दोहन एवं उपयोग उनके अस्तित्व को। संकटग्रस्त कर दिया है। अतः खनिजों का संरक्षण एवं प्रबंधन अपरिहार्य है। खनिजों का संरक्षण तीन बातों पर निर्भर है:

(i) खनिजों के निरंतर दोहन पर नियंत्रण।

(ii) उनका विवेकपूर्ण उपयोग जिससे खनिज का बचत किया जा सके।

(iii) कच्चे माल के रूप में इनके विकल्पों की खोज। उपर्युक्त बातों को अमल में लाकर खनिज के संकटग्रस्त अस्तित्व की रक्षा की जा सकती है।

(ङ) शक्ति (ऊर्जा) संसाधन

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर:

1. निम्न वर्जित किस राज्य में खनिज तेल का विशाल भंडार पाया जाता है?

(क) विहार (ख) असम (ग) राजस्थान (घ) मध्य प्रदेश

उत्तर-(ख)

2. भारत के किस स्थान पर पहला परमाणु ऊर्जा स्टेशन स्थापित किया गया था?

(क)तारापुर (ख) कलपक्कम(ग) नरोरा (घ) केगा

उत्तर-(क)

3. निम्न में कौन ऊर्जा स्रोत अनवीकरणीय है?

(क) जल (ख) सौर (ग) पवन (घ)कोयला

उत्तर-(घ)

4. निम्न में कौन प्राथमिक ऊर्जा का उदाहरण नहीं है?

(क)कोयला (ख) पेट्रलियम(ग) पवन (घ) कोयला

उत्तर-(ग)

5. ऊर्जा का गैर – पारंपरिक स्रोत कौन है?

(क) कोयला ( ख ) जलीय ऊर्जा (ग) सौर ऊर्जा (घ) परमाणु ऊर्जा

उत्तर- (ग)

6. गोंडवाना समूह के कोयले का निर्माण कब हुआ था?

(क) 20 हजार वर्ष पूर्व ( ख ) 20 लाख वर्ष पूर्व (ग) 20 करोड़ वर्ष पूर्व (घ) इनमें से कोई नहीं

उत्तर- (ग)

7. भारत में कोयले का प्रमुख उत्पादक राज्य इनमें कोन हे?

(क) पश्चिम बंगाल (ख) झारखंड (ग) उड़ीसा (घ ) छत्तीसगढ़

उत्तर-(ख)

8. कोयले की सर्वोत्तम किस्म कौन-सी है?

(क) ऐंधासाइट(ख) लिग्नाइट (ग) बिटुमिनस (घ) पोट

उत्तर-(क)

9. मुंबई हाई किसलिए प्रसिद्ध है?

(क) सोना उत्पादन हेतु (ख) परमाणु ऊर्जा हेतु (ग) तेलशोधन हेतु (घ) पेट्रोलियम उत्पादन हेतु

उत्तर (घ)

10.भारत का पहला तेलशोधक कारखाना कहाँ स्थापित हुआ था?

(क) मथुरा (ख) बरौनी (ग) डिगबोई (घ) गुवाहाटी

उत्तर-(ग)

11. प्राकृतिक गैस किस खनिज के साथ पाया जाता है?

(क) यूरेनियम(ख) पेट्रोलियम(ग) कोयला (घ) जल

उत्तर-(ख)

12. भाखड़ा नांग्ल परियोजना किस नदी पर अवस्थित है?

(क) नर्मदा (ख) झेलम (ग) सतलज (घ) ब्यास

उत्तर-(ग)

13. दक्षिण भारत की सबसे बड़ी नदी घाटी परियोजना कौन है?

(क) चंबल (ख) शरावती (ग) तुंगभद्रा (घ) हीराकुड

उत्तर-(ग)

14. ताप विद्युत उत्पादन केन्द्र का उदाहरण कौन है ?

(क) गया ( ख ) कटिहार (ग) समस्तीपुर (घ)वरौनी

उत्तर-(घ)

15. यूरेनियम के लिए प्रसिद्ध उत्पादक केन्द्र है।

(क) जादूगोड़ा (ख) घाटशिला (ग) खेतड़ी (घ ) झरिया

उत्तर-(क)

16. एशिया का सबसे बड़ा परमाणु विद्युत गृह कौन है?

(क)केगा (ख) तारापुर (ग) केलपक्कम (घ) नरौरा

उत्तर-(ख)

17. भारत के किस राज्य में सौर-ऊर्जा विकास की असीम संभावनाएँ हैं?

(क) असम (ख) बिहार (ग) राजस्थान (घ) उत्तर प्रदेश

उत्तर-(ग)

18. ज्वारीय ऊर्जा उत्पादन के लिए सर्वाधिक अनुकूल परिस्थितियाँ इनमें कहाँ पाई जाती हैं?

(क) कोसी नदी (ख) गंगा नदी (ग) मन्नार की खाड़ी (घ) खंभात की खाड़ी

उत्तर-(घ)

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तरः

1.पारंपरिक एवं गैर – पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के तीन-तीन उदाहरण लिखिए।

उत्तर – पारंपरिक ऊर्जा स्रोत-

(i) कोयला, (ii) पेट्रोलियम, (ii) जलविद्युत

गैर – पारंपरिक ऊर्जा स्रोत-

(i) पवन, (ii) सौर ताप, (iii) भूताप ।

2.गोंडवाना समूह के कोयला क्षेत्रों के नाम लिखिए।

उत्तर – गोंडवाना समूह के प्रमुख कोयला क्षेत्र है-

(i) दामोदर घाटी क्षेत्र , (ii) सोन घाटी क्षेत्र , (iii) महानदी घाटी क्षेत्र, (iv) वर्धा – गोदावरी क्षेत्र ।

3.झारखंड के मुख्य कोयला उत्पादक क्षेत्रों के नाम लिखिए।

उत्तर- झारखंड के मुख्य कोयला उत्पादक क्षेत्र हैं झरिया , बोकारो, धनबाद , गिरिडीह , कर्णपुरा , रामगढ़।

4. कोयले के विभिन्न प्रकार कोन-कोन से होते हैं?

उत्तर – कोयले के चार प्रमुख प्रकार होते हैं –

(i) ऐंधासाइट – सर्वोच्च कोटि के इस कोयले में कार्बन की मात्रा 80 % से अधिक होती है । जलने पर घुओं नहीं देता परंतु ताप अधिक देता है।

(ii) बिटुमिनस- इसमें कार्बन की मात्रा 60-80 % तक होती है । इसको जलाने पर धुआँ और ताप दोनों मिलता है।

(iii) लिग्नाइट – यह निम्न कोटि का कोयला है जिसमें 40-50 % तक कार्बन होती है जिससे जलने पर धुआं अधिक ताप कम देता है।

(iv) पीट – इसमें 40 96 से कम कार्बन होने से यह जलने पर सिर्फ धुआँ देता है, ताप काफी कम ।

5.पेट्रोलियम से बनने वाले वस्तुओं के नाम लिखें।

उत्तर – पेट्रोलियम से गैसोलीन , डीजल , सेहक, किरासन तेल , कीटनाशक दवाएँ, पेट्रोल , साबुन, कृत्रिम रेशा , प्लास्टिक इत्यादि वस्तुएँ बनाई जाती हैं।

6.सागर – सम्राट क्या है?

उत्तर – मुंबई तट से 176 किमी० पश्चिमोत्तर में अरब सागर में स्थित एक प्लेटफार्म का नाम सागर – सम्राट है , जहाँ से तेल के कुएँ खोदे जाते हैं।

7. किन्हीं चार तेलशोधक कारखानों के नाम लिखें।

उत्तर – भारत के चार तेलशोधक कारखाने हैं-

(i) डिग्बोई (असम), (ii) बरौनी (बिहार), (iii) मुंबई(महाराष्ट्र), (iv) मथुरा (उत्तर प्रदेश)।

8. जलविद्युत उत्पादन के लिए आवश्यक भौगोलिक कारकों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर – जलविद्युत उत्पादन के लिए आवश्यक भौगोलिक कारक हैं

(i) वर्षभर प्रचुर जल को नदी में उपलब्धता।

(ii) उत्पादित बिजली की माँग ।

(iii) उत्पादन तकनीक को उपलब्धता ।

(iv) पर्याप्त पूँजी।

(v) नदी मार्ग में ढाल एवं जल का तीव्र वेग।

9. नदी घाटी परियोजनाओं को बहुउद्देशीय क्यों कहा जाता है?

उत्तर – कुछ नदी घाटी परियोजनाओं के अंतर्गत नदियों पर बराज बनाकर सिंचाई कार्य, बिजली उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण , मिट्टी कटाव की रोकथाम , मत्स्य पालन , यातायात को सुविधा , मनोरंजन की सुविधा इत्यादि जैसी कई उद्देश्यों को पूरा किया जाता है । इसलिए इन्हें बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएँ कहा जाता है।

10.निम्नलिखित नदी घाटी परियोजनाओं के राज्यों के नाम लिखें । हीराकुंड, तुगभद्रा एवं रिहंद ।

उत्तर- हीराकुड परियोजना — उड़ीसा तुगभद्रा परियोजना — आंध्र प्रदेश रिहंद परियोजना – उत्तर प्रदेश

11.ताप शक्ति समाप्य संसाधन माना जाता है। क्यों?

उत्तर – ताप शक्ति का उत्पादन कोयला , पेट्रोलियम जैसे अनवीकरणीय संसाधनों द्वारा होता है । इनके भंडार सीमित हैं तथा भविष्य में समाप्त हो जाएंगे। इसलिए इन पर निर्भर करनेवाले ताप शक्ति को भी समाप्य संसाधन माना जाता है।

12.परमाणु शक्ति किन-किन खनिजों से प्राप्त होता है ? उल्लेख करें।

उत्तर – परमाणु शक्ति यूरेनियम, थोरियम, इल्मेनाइट, एंटीमनी , ग्रेफाइट, बेनेडियम जैसे खनिजों से प्राप्त होता है।

13.मोनाजाइट भारत में कहाँ-कहाँ पाया जाता है?

उत्तर – मोनाजाइट भारत के केरल राज्य के साथ ही साथ तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश और उड़ीसा के तटीय क्षेत्रों में पाया जाता है।

14.सौर ऊर्जा के उत्पादन विधि का उल्लेख करें।

उत्तर – सौलर प्लेट पर लगे फोटोवोल्टेक सेल पर जब सूर्य की किरणें पड़ती हैं तब ये सेल सूर्य किरणों को ऊर्जा में परिवर्तित कर देती हैं, जिसे सौर ऊर्जा कहा जाता है।

15. भारत के किन-किन राज्यों में पवन ऊर्जा के लिए अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियाँ हैं?

उत्तर भारत में पवन ऊर्जा के लिए अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियाँ राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र कर्नाटक एवं तमिलनाडु राज्यों में हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तरः

1.शक्ति संसाधन का वर्गीकरण कर उपयुक्त उदाहरण भी दें।

उत्तर – शक्ति मानवीय जीवन का आधार है । इन संसाधनों के आधार पर ही औद्योगीकरण एवं नगरीकरण संभव हो पाया है। दूसरे शब्दों में ” शक्ति या ऊर्जा विकास की कुंजी है । ” शक्ति के कई साधन हैं, परंतु विभिन्न आधारों पर इनके कई वर्ग किए जा सकते हैं

1. उपयोग के आधार पर उपयोग स्तर के आधार पर वैज्ञानिकों ने शक्ति के संसाधन को दो वर्गों में बाँटा है

(क) सतत शक्ति के साधन – इन साधनों में भूतापीय ऊर्जा , पवन ऊर्जा , सौर ऊर्जा इत्यादि शामिल हैं।

(ख) समापनीय शक्ति के साधन – इसके अंतर्गत कोयला , पेट्रोलियम , प्राकृतिक गैस एवं परमाणु खनिज जैसे समाप्त होने वाले साधन शामिल हैं।

2. उपयोगिता के आधार पर इस आधार पर ऊर्जा संसाधनों को दो वर्गों में बाँटा जाता है।

(क) प्राथमिक ऊर्जा – जैसे कोयला, पेट्रोलियम , प्राकृतिक गैस, परमाणु खनिज इत्यादि ।

(ख) गोण ऊर्जा – जैसे विद्युत , जो प्राथमिक खनिजों से उत्पन्न किया जाता है।

3. स्रोत की स्थिति के आधार पर इस आधार पर भी शक्ति संसाधनों के दो वर्ग किए जाते हैं।

(क) क्षयशील संसाधन – जैसे – कोयला , पेट्रोलियम , प्राकृतिक गैस इत्यादि।

(ख)अक्षयशील संसाधन जैसे – प्रवाही जल, सौर ऊर्जा , पवन एवं ज्वारीय तरंगें इत्यादि ।

4. संरचनात्मक गुण के आधार पर इसके तहत शक्ति संसाधनों को जैविक एवं अजैविक में बाँटा जाता है।

(क) जैविक संसाधन – मानव एवं अन्य पशु आदि ।

(ख) अजैविक संसाधन – जल शक्ति , पवन शक्ति , सौर शक्ति इत्यादि।

5. समय के आधार पर इस दृष्टि से इन्हें परंपरागत एवं गैर परंपरागत साधनों में बाँटा जाता है।

(क) परंपरागत साधन – जैसे कोयला, जल, पेट्रोलियम , प्राकृतिक गैस ।

(ख) गैर परंपरागत साधन – पवन, सौर, ज्वार, भूताप, बायो गैस इत्यादि।

2.भारत के पारंपरिक शक्ति के विभिन्न स्रोतों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर – भारत में पारंपरिक शक्ति के साधनों के अंतर्गत कोयला, पेट्रोलियम, जल विद्युत, परमाणु ऊर्जा को शामिल किया जाता है।

(i) कोयला – कोयला पारंपरिक ऊर्जा साधनों में सबसे पुराना स्रोत है। भारत में इसकी कुल अनुमानित भंडार लगभग 25530 करोड़ टन है। यहाँ कोयला गोंडवाना और टर्शियरीकालीन चट्टानों में पाया जाता है। गोंडवाना कोयला प्रमुख भंश प्रभावित नदी घाटियों के क्षेत्रों में मिलती है जिसमें दामोदर , सोन, महानदी, वर्धा एवं गोदावरी घाटी प्रमुख हैं । देश में कोयले का कुल उत्पादन 43 करोड़ टन के आस – पास है। टर्शियरी कोयला का प्रमुख भंडार तमिलनाडु के नेवेली क्षेत्र में है।

(ii) पेट्रोलियम – भारत में पेट्रोलियम का अनुमानित भंडार 17 अरब टन है। देश में पेट्रोलियम का उत्पादन इयोसीन और मायोसीन कालीन चट्टानों से होता है। उत्तर पूर्वी राज्य, गुजरात क्षेत्र , मुंबई हाई क्षेत्र , पूर्वी तटीय प्रदेश एवं बाडमेर क्षेत्र प्रमुख तेल उत्पादक क्षेत्र हैं । यहाँ से उत्पादित तेल देश के 18 तेर धनशालाओं में साफ होता है जो देश के विभिन्न भागों में फैले हैं।

(iii) जल विद्युत देश में जल विद्युत उत्पादन के लिए कई परियोजनाएँ विकसित हैं। इनमें भाखड़ा नांगल, दामोदर घाटी, कोसों, हीराकुंड, रिहंद, चंबल, तुंगभद्रा इत्यादि प्रमुख परियोजनाएँ हैं।

(iv) परमाणु ऊर्जा भारत में परमाणु अथवा रेडियोसक्रिय खनिजों की प्रचुरता के कारण परमाणु बिजली उत्पादन की अच्छी संभावनाएं हैं। परिणामस्वरूप देश में परमाणु विद्युत गृह क्रमशः तारापुर , कोटा, कलपक्कम , नरोरा, ककरापार, कैगा एवं कुडनकुलम में स्थापित एवं कार्यरत हैं कुडनकुलम अभी निर्माणाधीन अवस्था में है।

(v) प्राकृतिक गैस – प्राकृतिक गैस से भी विद्युत या ऊर्जा का काम देश में लिया जा रहा है।

3. गोंडवानाकालीन कोयले का भारत में वितरण का विवरण दीजिए।

उत्तर – भारत में पाया जानेवाला कोयला गोडवानाकालीन एवं टर्शियरीकालीन है। इनमें गोंडवानाकालीन कोयला का हिस्सा कुल कोयला भंडार में 96 96 तथा कुल उत्पादन में 999 है। इस कोयले का निर्माण लगभग 20 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ था । आज गोंडवानाकालीन कोयला चार प्रमुख भ्रंश प्रभावित नदी घाटी क्षेत्रों में मिलती हैं। ये घाटियाँ हैं

(i) दामोदर घाटी,

(ii) सोन घाटी,

(iii) महानदी घाटी ,

(iv) गोदावरी घाटी।

वितरण – गोंडवानाकालीन कोयला भंडारों में ऐंधासाइट एवं बिटुमिनस किस्म का कोयला पाया जाता है जो देश के झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा , महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल राज्यों में सीमित है। झारखंड- झारखंड कोयला भंडार एवं उपजाऊ में देश में पहला स्थान रखता है । यहाँ देश के कुल कोयला भंडार का 30% सुरक्षित है। यहाँ के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में बोकारो, झरिया, रामगढ़ , कर्णपुरा इत्यादि शामिल हैं। यहाँ से देश के कुल कोयला उत्पादन का 23 96 हिस्सा प्राप्त होता है। छत्तीसगढ़ – इस राज्य में कुल 15 96 सुरक्षित भंडार है। यहाँ का कोयला चिरमिरी, कुरसिया , विश्रामपुर, झिलमिली , सोन्हाट एवं कोरवा देश का 16 % कोयला उत्पादित होता है। उड़ीसा – यहाँ देश का 1/4 कोयला का भंडार है। जिसमें तालचेर प्रमुख उत्पादक क्षेत्र है। महाराष्ट्र – यहाँ देश का 3 % कोयला है जहाँ चाँदा , वर्धा, कांपटी एवं बंदर से देश का 99 कोयला उत्पादित होता है। मध्य प्रदेश- यहाँ 796 कोयला भंडार है। यहाँ के प्रमुख कोयला उत्पादक क्षेत्रों में सिंगरौली, सोहागपुर, उमरिया, पेंच, मोहपानी इत्यादि हें। पश्चिम बंगाल – यहाँ रानीगंज देश का प्रमुख कोयला उत्पादक क्षेत्र स्थित है। इसके अतिरिक्त आंध्र प्रदेश में भी कोयला का उत्पादन होता है। देश में कोयले का कुल उत्पादन 2006-07 में 43 टन करोड़ टन के लगभग हुआ।

4. कोयले का वर्गीकरण कर उनकी विशेषताओं को लिखें।

उत्तर- कोयला ऊर्जा देने वाला पारंपरिक स्रोत है। यह चार प्रकार का होता है।

(i) ऐंधासाइट – इस प्रकार के कोयला में कार्बन की मात्रा 8096 से अधिक होती है तथा नमी नहीं के बराबर होती है। परिणामस्वरूप, जलाने या जलने पर यह कोयला ताप अधिक देता है एवं इससे धुआँ नहीं निकलता है। इसलिए इसे कोयला का सर्वोत्तम किस्म कहा जाता है। अधिक देर तक ऊष्मा देनेवाला यह कोयला कोकिंग – कोयला भी कहा जाता है, जो धातु गलाने में उपयोग किया जाता है!

(ii) बिटुमिनस- इस प्रकार के कोयले की किस्म में कार्बन की मात्रा 60-80 96 तक होती है । फलत : जलने पर यह ऊष्मा और धुआँ दोनों प्रदान करता है। भारत का अधिकांश कोयला इसी कोटि का है । इसे परिष्कृत कर कोकिंग कोयला बनाया जा सकता है

(iii) लिग्नाइट – इसे निम्न कोटि का कोयला माना जाता है, जिसमें कार्बन की मात्रा 30 60 96 तक होती है। नमी की उपस्थिति के कारण जलने पर यह ऊष्मा या ताप कम देता है तथा धुआँ अधिक देता है। इसे ही’ भूरा कोयला कहा जाता है।

(iv) पीट कोयला- यह निम्नतम कोटि का कोयला है जिसमें कार्बन की मात्रा 3096 से कम होती है। फलतः जलने पर यह धुआँ अत्यधिक देता है तथा ताप अत्यधिक कम । ऐंध्रासाइट एवं विटुमिनस किस्म का कोयला गोंडवाना समूह के चट्टानों में पाया जाता है जबकि टर्शियरीकालीन अवसादीय चट्टानों में लिग्नाइट पाया जाता है । पीट दलदली भागों में पाया जाता है।

5. भारत में खनिज तेल के वितरण का वर्णन कीजिए।

उत्तर – भारत में खनिज तेल का भंडार लगभग 17 अरब टन है जो विश्व का मात्र 1 96 है । देश में पहली बार डिग्बोई में तेल खोदा गया था। इसके बाद देश के कई हिस्सों में खनिज तेल का पता लगाया गया, जहाँ से इसका उत्पादन भी रहा है। वितरण- वर्तमान समय में खनिज तेल के देश में पाँच प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं

(i) उत्तर – पूर्वी राज्य – यह देश का सबसे पुराना तेल उत्पादक क्षेत्र है । आज असम के अतिरिक्त नागालैंड एवं अरुणाचल प्रदेश में भी तेल की खोज की गई है। यहाँ के प्रमुख उत्पादक केन्द्रों में नहरकटिया , सुगड़ीजन, डिग्बोई , मोरन , लखीमपुर , रूद्रसागर, बोरहोल्ला इत्यादि है । यहाँ का तेल साफ होने के लिए डिग्बोई , नूनकाटी, बोगाई गाँव , बरौनी एवं हल्दिया भेजा जाता है।

(ii) गुजरात क्षेत्र यहाँ खंभात की खाड़ी के अतिरिक्त गुजरात के मैदान में भी तेल मिले हैं। प्रमुख उत्पादक केन्द्रों में अंकलेश्वर, कलोल , कोसंबा , सानंद, मेहसाणा, दबका, लुनेज, बड़ोदरा, नवगाँव इत्यादि हैं।

(iii) मुंबई हाई क्षेत्र -1975 से तेल उत्पादन करनेवाला यह क्षेत्र अरब सागर में स्थित हे जो वर्तमान में देश का सर्वाधिक तेल उत्पादन करनेवाला क्षेत्र है । इसके अतिरिक्त कई अन्य तेल कुआँ से भी तेल का उत्पादन किया जा रहा है।

(iv) पूर्वी तटीय प्रदेश यहाँ कृष्णा – गोदावरी और कावेरी नदियों की घाटियों में तेल मिला है जिसमें नारीमनन एवं कोविलकप्पल प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं ।

(v) बाडमेर बेसिन यहाँ से सितंबर 2009 में तेल का उत्पादन शुरू हुआ है। यहाँ से प्रतिदिन 56000 बैरल तेल का उत्पादन हो रहा है। देश में उत्पादित कुल तेल का परिष्करण देश में स्थापित 18 तेल परिष्करणशालाओं में किया जाता है।

6.जल विद्युत उत्पादन हेतु अनुकूल भौगोलिक आर्थिक कारकों की विवेचना कीजिए।

उत्तर – जल विद्युत पपिरिक ऊर्जा के सोत हैं । यह ऐसा अक्षयशील संसाधन हैं जो नवीकरणीय है तथा विद्युत उत्पादन का एक प्रमुख स्रोत है। नदी या किसी अन्य रूप में तीन वेग से प्रवाहित जल से उत्पन्न की जाने वाली शक्ति को जल विद्युत शक्ति कहा जाता है । बहते हुए जल को तीव्र गति से गिराकर टरबाइन को घुमाया जाता है तब इस ऊर्जा से विद्युत ऊर्जा उत्पन्न की जाती है जल विद्युत उत्पादन के लिए अनुकूल भौगोलिक एवं आर्थिक कारकों में मुख्य हैं –

(i) नदी में वर्षभर पर्याप्त जल की मात्रा का रहना ।

(ii) नदी मार्ग में ढाल का होना ।

(iii) जल का तीव्र वेग होना।

(iv) प्राकृतिक जलप्रपात का होना ।

(v) जल एकत्र करने के लिए विशाल क्षेत्रफल का होना।

(vi) क्षेत्र में विद्युत की माँग का होना।

(vii) उत्पादन तकनीक का ज्ञान होना।

(vill) जल विद्युत उत्पाद तकनीक विकास हेतु पर्याप्त पूँजी का होना ।

(ix) निकटवर्ती क्षेत्र में दूसरे ऊर्जा उत्पादन संसाधन का अभाव होना ।

(x) निकटवर्ती क्षेत्र में उद्योग एवं वाणिज्य का आबाद होना।

(xi) परिवहन के साधन का विकसित होना।

7. संक्षिप्त भौगोलिक टिप्पणी लिखिए :

भाखड़ा – नंगल परियोजना, दामोदर घाटी परियोजना, कोसी परियोजना, हीराकुंड परियोजना, रिहन्द परियोजना और तुगभद्रा परियोजना।

उत्तर भाखड़ा नंगल परियोजना – यह सतलज नदी पर निर्मित न केवल भारत की सबसे बड़ी नदी परियोजना है बल्कि, यह विश्व का सबसे ऊँचा बांध है । इसकी ऊँचाई 225 मीटर है। इस पर चार शक्ति गृह स्थापित हैं, जो 7 लाख किलोवाट विद्युत उत्पन्न कर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरांचल , उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान तथा जम्मू – कश्मीर जैसी राज्यों की कृषि एवं औद्योगिक प्रगति में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया है

दामोदर घाटी परियोजना- झारखंड एवं प. बंगाल को दामदेर नदी की प्रलयंकारी बाढ़ से बचाने के लिए एवं जल विद्युत उत्पादन करने के लिए तिलैया, मैधन, कोनार और पंचेत पहाड़ी में बाँध बनाकर इस परियोजना का विकास किया गया है। यहाँ 1300 मेगावाट जल विद्युत उत्पन्न किया जाता है, जिसका लाभ बिहार, झारखंड एवं प. बंगाल को प्राप्त है।

कोसी परियोजना-, विहार की अभिशापकोसी नदी पर हनमान नगर (नेपाल) में बांध बनाकर इस परियोजना से 20,000 किलो वाट विद्युत उत्पन्न किया जाता है । इसकी  आधी बिजली नेपाल और शेष बिहार में खपत किया जाता है।

हीराकुण्ड परियोजना – यह महानदी पर निर्मित विश्व की सबसे लंबी ( 4801 मीटर) परियोजना है। जहाँ 2.7 लाख किलोवाट विद्युत का उत्पादन होता है, जिसका उपयोग उड़ीसा एवं सीमावर्ती राज्यों द्वारा किया जाता है।

रिहन्द परियोजना – सोन को सहायक नदी रिहन्द पर उत्तर प्रदेश में 934 मीटर लंबा बांध लगाकर कृत्रिम झील गोविन्द बल्लभ पंत सागर का निर्माण कर 30 लाख किलोवाट विद्युत उत्पन्न की जाती है। इससे रेणुकुट के विविध औद्योगिक प्रतिष्ठान लाभान्वित होते हैं।

तुंगभद्रा परियोजना-आंध्र प्रदेश स्थित द. भारत की यह सबसे बड़ी परियोजना है जो कृष्णा की सहायक नदी तुंगभद्रा पर निर्मित है। इसकी विद्युत उत्पादन क्षमता 1 लाख किलोवाट है । इसका निर्माण कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश राज्य के सहयोग से हुआ है।

8. भारत के चार परमाणु विद्युत गृहों का नाम लिखकर उनकी विशेषताओं को लिखिए।

उत्तर भारत में रेडियो सक्रिय खनिजों की प्रचुरता के कारण परमाणु विद्युत उत्पादन की पुरी संभावनाएँ मौजूद हैं। देश में यूरेनियम का मुख्य भंडार झारखंड के जादूगोडा में है । पर्याप्त माँग एवं उत्पादन तकनीक मौजूद होने के कारण देश में सर्वप्रथम 1955 में पहला आण्विक स्पैिक्टर मुंबई के निकट ट्राम्बे में स्थापित किया गया । वर्तमान समय में देश में 6 परमाणु विद्युत गृह कार्यरत हैं। इनमें से चार प्रमुख हैं

(i) तारापुर परमाणु संयंत्र भारत का यह पहला परमाणु विद्युत शक्ति उत्पादन गृह है जो एशिया में सबसे बड़ा है । इस केन्द्र में यूरेनियम के स्थान पर थोरियम को इनरिच करके प्लूटोनियम बनाकर उससे विद्युत उत्पन्न किया जा रहा है । जल उबालने के लिए यहाँ 200 मेगावाट क्षमता वाले दो – द्रो परमाणु भट्टियाँ लगी हैं।

(ii) राणा प्रताप सागर परमाणु संयंत्र – राजस्थान के कोटा शहर में यह विद्युत उत्पादन केन्द्र चंबल नदी के किनारे स्थापित है। कनाडा के सहयोग से बने इस विद्युत गृह की उत्पादन क्षमता 100 मेगावाट है ।

(iii) कलपक्कम परमाणु संयंत्र तमिलनाडु के कल्पक्कम स्थान पर विकसित यह परमाणु बिजली घर पूर्णतः । स्वदेशी प्रयास से बना है। यहाँ 335 मेगावाट विद्युत उत्पादन के दो रिएक्टर काम कर रहे हैं

(iv) नरोरा परमाणु संयंत्र उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर के पास नरौरा में स्थापित परमाणु बिजली उत्पादन गृह का निर्माण माँग आधारित है। निकटवर्ती क्षेत्रों में उद्योगों के विकास के कारण यहाँ 235 मेगावाट के दो रिएक्टर कार्यरत

9. ऊर्जा संसाधनों के संरक्षण हेतु आवश्यक सुझाव दीजिए।

उत्तर – ऊर्जा के परंपरागत सोत या संसाधन सभी क्षयशील या समाप्त होने वाले संसाधन हैं। परंतु ऊर्जा या शक्ति के बिना औद्योगिक विकास अथवा आर्थिक विकास संभव नहीं है । साथ ही साथ ऊर्जा के गैर – परंपरागत स्रोत वृहत् स्तर पर परंपरागत स्रोत के विकल्प का स्थान नहीं ले पाए हैं। इसलिए सतत् विकास के लिए यह आवश्यक है कि ऊर्जा संसाधनों को संरक्षित किया जाए । ऊर्जा संकट एक विश्वव्यापी समस्या है। अतः इसके समाधान के लिए अथवा ऊर्जा संसाधनों के संरक्षण हेतु कुछ मुख्य उपयोगी सुझाव इस प्रकार हैं|

(i) ऊर्जा के उपयोग में मितव्ययिता अपनाई जाए – ऊर्जा के उपयोग में मितव्ययिता का संबंध इन संसाधनों के बचत से है। ऐसी तकनीक का विकास एवं उपयोग किया जाना चाहिए जिससे कम ऊर्जा खपत में अधिक शक्ति मिल सके । नए मोटरगाड़ियों, मोटरसाइकिल का निर्माण, सी. एफ. ए. बल्ब का निर्माण इस दिशा में उपयोगी है।

(ii) ऊर्जा के नवीन क्षेत्रों की खोज की जाए – इसका संबंध उपलब्ध ऊर्जा संसाधनों के नए भंडारों की खोज से है। देश में पेट्रोलियम , प्राकृतिक गैस के नए भंडारों की खोज इसी उद्देश्य से की जा रही है । इनके लिए नवीन सुदूर संवेदी सूचना तकनीक का भी उपयोग बढ़ा है।

(iii) नवीन वैकल्पिक संसाधनों की खोज की जाए – इसका तात्पर्य यह है कि ऊर्जा की बढ़ती माँग को देखते हुए नवीन तकनीक के सहारे ऊर्जा के नए वैकल्पिक स्रोतों की खोज की जानी चाहिए। साथ ही गैर – परंपरागत ऊर्जा साधनों के वृहत् स्तर पर उपयोग की दिशा में भी शोध एवं कार्य किए जाने चाहिए ।

(iv) अंतर्राष्ट्रीय सहयोग इस दिशा में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बैठकर इस दिशा में विचार – विमर्श करना आवश्यक है।

(v) जागरूकता फैलाना जरूरी-ऊर्जा संसाधन के मितव्ययिता एवं संरक्षण हेतु लोगों के बीच विशेषकर बच्चों के बीच जागरूकता फैलाना जरूरी है।